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________________ पांचवां अध्याय : राजकर-व्यवस्था ११३ कर लिया।' राजा ब्राह्मणों का पक्षपात मी कर लेता था । उदाहरण के लिए, किसी वणिक् को निधि का लाभ होने पर राजा ने उसे दण्ड दिया और उसकी निधि जब्त कर ली, लेकिन ब्राह्मण को निधि मिलने पर उसका सत्कार किया गया। जुर्माने की वसूली से भी राजा को द्रव्य की प्राप्ति होती थी। कर वसूल करने वाले कर्मचारियों के संबंध में अधिक सामग्री उपलब्ध नहीं होती । कल्पसूत्र में रज्जुकसभा का उल्लेख मिलता है । यह सभा पावापुरी के हस्तिपाल राजा की थी जहां श्रमण भगवान् महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था । रज्जुक लाठी में बांधो हुई रस्सी के छोर को पकड़कर खेतों को मापने का काम किया करता था ।" शुल्कपालों की निर्दयता शुल्कपाल कर वसूल करने में निर्दयता से काम लेते और जनसाधारण उनसे संत्रस्त रहा करते । अपने अधीन राजाओं से कर वसूल न होने के कारण राजा प्रायः उन पर आक्रमण कर देते । " शूर्पारिक का राजा व्यापारियों ( नैगम ) से कर वसूल करने में जब असमर्थ हो गया तो अपने शुल्कपालों को भेज कर उसने उनके घर जला देने का आदेश दिया । विजय वर्धमान नाम का खेड़ा पाँच सौ १. कल्पसूत्रटीका १, पृ० ७ । तुलना कीजिए अवदानशतक १, ३, पृ० १३; तथा मय्हकजातक ( ३६० ) । २. निशीथभाष्य १०.६५२२ । तुलना कीजिए गौतमधर्मसूत्र १०.४४; याज्ञवल्क्यस्मृति २.२.३४ आदि; मनुस्मृति ७.१३३ । ३. कुरुधम्मजातक ( २७६ ) में इसे रज्जुगाहक श्रमच्च तथा अशोक के शिलालेखों में राजुक के रूप में उल्लिखित किया है । तथा देखिए-फिक रिचर्ड, द सोशल आर्गनाइज़ेशन इन नार्थ-ईस्ट इण्डिया इन बुद्धाज़ टाइम, पृ० १४८ - १५२; मेहता, प्री-बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० १४२-१४४ । ४. देखिये बृहत्कल्पभाष्य ४.५१०४ । ५. श्रावश्यकचूर्णी २, पृ० १६० । ६. बृहत्कल्पभाष्य १.२५०६ आदि । तथा देखिए महापिंगल जातक ( २४० ) यहाँ वाराणसी के राजा महापिंगल को बड़ा अन्यायी और कोल्हू में पेरे जानेवाले गन्ने को भाँति प्रजा का शोषक कहा गया है । तथा फिक, वही, पृ० १२० इत्यादि । ८ जै० १० भा०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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