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________________ ११२ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज वर्दकर (बैल), घटकर, चर्मकर, चुल्लगकर (भोजन ) और अपनी इच्छा से दिया जानेवाला कर । ये कर गांवों में ही वसूल किये जाते थे, और नगर ( न+कर) इनसे मुक्त रहते । कर वसूल करनेवाले कर्मचारी शुल्कपाल (गोमिया सुंकिया) कहे जाते थे। पुत्रोत्पत्ति, राज्याभिषेक आदि के अवसरों पर कर माफ कर दिया जाता । __ राजकोष को समृद्ध बनाने के अन्य उपाय राजकोष को समृद्ध बनाने के और भी उपाय थे। राजगृह का नन्द नामक मनियार श्रेष्ठी नगर में एक पुष्करिणी खुदवाना चाहता था। अपने मित्रों से परिवेष्टित हो वह कोई महान् उपहार लेकर राजा श्रेणिक के पास गया, और पुष्करिणी खुदवाने की अनुमति प्राप्त की। चम्पा नगरी के सुवर्णकार कुमारनन्दि ने पंचशैल द्वीप के लिए प्रस्थान करने की घोषणा करने के पूर्व राजा की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक समझा। सुवर्ण आदि का बहुमूल्य उपहार लेकर वह राजा की सेवा में उपस्थित हुआ और अनुमति मिल जाने पर यात्रा के लिए रवाना हुआ। . इसके सिवाय, यदि कभी सम्पत्ति का कोई वारिस न होता, या कहीं गड़ी हुई निधि मिल जाती तो उस पर भी राजा का अधिकार हो जाता । चन्द्रकान्ता नगरी के राजा विजयसेन को जब पता लगा कि किसी व्यापारी की मृत्यु हो गयी है और उसकी संपत्ति का कोई वारिस नहीं रहा तो उसने कर्मचारियों को भेज कर उस सम्पत्ति पर कब्जा १. आवश्यकनियुक्ति १०७८ आदि, हरिभद्रटीका; तथा देखिए मलयगिरि की टीका भी १०८३-४, पृ० ५६६ । कौटिल्य के अर्थशास्त्र २.६.२४.२ में बाईस प्रकार के राजकर बताये गये हैं। २. नत्थेत्य करो नगर ( वृहत्कल्पभाष्य १.१०८६ ); अभयदेव, व्याख्याप्रज्ञप्तिटीका ३.६, पृ० १०६ ( बेचरदास, अनुवाद)। अभयदेव ने ग्राम का निम्नलिखित लक्षण किया है-ग्रसति बुद्धयादीन् गुणान् इति ग्रामः । यदि वा गम्यः शास्त्रप्रसिद्धानां अष्टादशकगणाम् । ३. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ७१; निशीथभाष्य २.६७१ चूर्णी । ४. ज्ञातृधर्मकथा १३, पृ० १४२।। ५. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २५१-श्र।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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