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________________ पांचवा अध्याय : राजकर-व्यवस्था १११ के माल पर लगाये जानेवाले टैक्स को शुल्क कहते थे। किसी व्यापारी के पास बीस कीमती बर्तन थे, उनमें से एक बर्तन राजा को देकर वह कर से मुक्त हो गया ।' चम्पा नगरी के पोतवणिक् बाहर से धन कमाकर लौटे और गंभीरपोतपट्टन में उतर मिथिला नगरी में आये । राजा के लिए वहुमूल्य कुण्डलयुगल का उपहार लेकर वे उससे भेंट करने चले। राजा कुण्डलयुगल देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने उन लोगों का विपुल अशन, पान आदि द्वारा सत्कार किया और उनका शुल्क माफ कर दिया। आजकल की भांति उन दिनों भी व्यापारी लोग माल को छिपा लेते और टैक्स से बचने की कोशिश करते । अचल नाम का कोई व्यापारी पारसकुल से धन कमाकर बेन्यातट लौटा । हिरण्य, सुवर्ण और मोतियों का थाल भरकर वह राजा के पास पहुँचा । राजा पंचकुलों को साथ ले उसके माल की परीक्षा करने आया । अचल ने शंख, सुपारी, चंदन, अगुरु, मंजीठ आदि अपना माल दिखा दिया; लेकिन राजा ने जब बोरों को तुलवाया तो वे भारी मालूम दिये । राजकर्मचारियों ने पाँव की ठोकर और बांस की डंडी से पता लगाया ता मालूम हुआ कि मंजीठ के अन्दर सोना, चांदी, मणि, मुक्ता और प्रवाल आदि कीमतो सामान छिपा हुआ है। यह देखकर राजा ने अचल को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया । ____अठारह प्रकार का कर जैन सूत्रों में अठारह प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है:-गोकर ( गाय बेचकर दिया जाने वाला कर ), महिषकर, उष्टकर, पशुकर, छगलीकर ( बकरा), तृणकर, पलालकर (पुवाल), बुसकर (भूसा), काष्ठकर, अङ्गारकर, सीताकर (हल पर लिया जाने वाला कर), उंबरकर (देहली अथवा प्रत्येक घर से लिया जाने वाला कर), जंघाकर (अथवा जंगाकर =चरागाह पर लिया जाने वाला कर), बली १. निशीथभाष्य २०.६५२१ । २. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १.२ । ३. उत्तराध्ययनटीका ३, प०६४ । कौटिल्य ने अर्थशास्त्र २.२१.३८, ३८ में बताया है कि बढ़िया माल को छिपानेवाले का सारा माल जब्त कर लेना चाहिए। ४. बृहत्कल्पभाष्य ३.४७७० में इसका उल्लेख है।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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