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________________ पांचवां अध्याय राजकर-व्यवस्था कानूनी टैक्स लगान और कर के द्वारा राज्य का खर्च चलता था। व्यवहारभाष्य में साधारणतया पैदावार के दसवें हिस्से को कानूनी टैक्स स्वीकार किया गया है। वैसे पैदावार की राशि, फसल की कीमत, बाजार-भाव और खेती की जमीन आदि के कारण टैक्स की दर में अन्तर होता रहता था। खेत और गाय आदि के अतिरिक्त प्रत्येक घर से भी टैक्स वसूल किया जाता था। राजगृह में किसी वणिक् ने पक्को ईटों का घर बनवाया, लेकिन गृहनिर्माण पूरा होते ही वणिक की मृत्यु हो गयी । वाणिक के पुत्र बड़ी मुश्किल से अपनी आजीविका चला पाते थे। लेकिन नियमानुसार उन्हें राजा को एक रुपया कर देना आवश्यक था । ऐसी हालत में कर देने के भय से वे अपने घर के पास एक झोपड़ी बनाकर रहने लगे; अपना घर उन्होंने जैन-श्रमणों को रहने के लिए दे दिया। जान पड़ता है, शूर्पारक नगर के वणिक लोगों में कर देने की प्रथा नहीं थी। यहाँ वणिकों के ५०० परिवार रहते थे। एक बार राजा ने प्रत्येक परिवार के ऊपर एक-एक रुपया कर लगा दिया । वाणिकों ने सोचा कि यदि यह कर चल पड़ा तो उन की पीढ़ी दर पीढ़ी को इसे देते रहना पड़ेगा। यह सोचकर वे अग्नि में प्रवेश कर गये। __ व्यापारियों के माल-असबाब पर भी कर लगाया जाता था। बिक्री १. व्यवहारभाष्य १, पृ० १२८-अ। गौतमधर्मसूत्र १०.२४ में खेती से वसूल किये जानेवाले तीन प्रकार के करों का उल्लेख है:-दसवां, अाठवाँ और छठा हिस्सा; तथा देखिए मनुस्मृति ७.१३० श्रादि । २. बृहत्कल्पभाष्य ३.४७७०; पिंडनियुक्तिटीका ८७, पृ० ३२-अ में प्रत्येक घर से प्रतिवर्ष दो द्रम्म लिए जाने का उल्लेख है। ३. निशीथभाष्य १६.५१५६ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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