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________________ १०८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज के लिए कवच अत्यन्त उपयोगी होता था । वज्रप्रतिरूपक अभेद्य कवच धारण कर कूणिक ने चेटक के साथ युद्ध किया था। बाणों में नाग-बाण, तामस-बाण, पद्म-बाण, वह्नि-बाण, महापुरुषबाण और महारुधिर-बाण आदि मुख्य हैं। इन बाणों को अद्भुत और विचित्र शक्तिधारी कहा गया गया है। नाग बाण को जब धनुष पर चढ़ाकर छोड़ा जाता तो वह जलती हुई उल्का के दण्डरूप में शत्र के शरीर में प्रवेश कर, नाग बनकर उसे चारों ओर से लपेट लेता। तामस-बाण छोड़ने पर रणभूमि में अन्धकार ही अन्धकार फैल जाता। महायुद्ध में महोरग, गरुड, आग्नेय, वायव्य और शैल आदि अस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। - ध्वजा और पताका भी रणभूमि में उपयोगी होती थी । पटह और भेरियों का शब्द योद्धाओं को प्रोत्साहित करता। सैनिक अपने बाणों द्वारा ध्वजा को छिन्न-भिन्न कर देते और शत्र के हाथ में ध्वजा पड़ जाने पर युद्ध का अन्त हो जाता।' कृष्णवासुदेव की कौमुदिकी, अर्थशास्त्र २.१८.३६ ; रामायण ३.२२.२० आदि; पुसालकर, भासए स्टडी, अध्याय १६, पृ० ४१४; बनर्जी पी० एन०, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन इन ऐशियेंट इण्डिया, पृ० २०४ श्रादि; रतिलाल मेहता, प्री-बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० १७१; दाते जी० जी०, द आर्ट ऑव वार इन ऐंशिथेट इण्डिया; श्रोपर्ट गुस्ताव, वेपेंस एण्ड आर्मरी आर्गनाइजेशन । १. व्याख्याप्रज्ञप्ति ७.६ । २. जीवाभिगम ३, पृ० १५३, २८३; जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति २, पृ० १२४-अ; तथा रामायण १.२७.१६ श्रादि । ३. चित्रं श्रेणिक ! ते बाणा भवन्ति धनुराश्रिताः। . उल्कारूपाश्च गच्छन्तः शरीरे नागमूर्तयः ।। क्षणं बाणा क्षणं दण्डाः क्षणं पाशत्वमागताः। आकरा वस्त्रभेदास्ते यथाचिंतितमूर्तयः ॥ जीवाभिगम, ३, पृ० २८३। ४. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २३८ । ५. तुलना कीजिए व्याख्याप्रज्ञप्ति ७.६ । ध्वजा के वर्णन के लिए देखिए कल्पसूत्र ३.४० । तुलना कीजिए रामायण ३.२७.१५; महाभारत ५.८३.४६ आदि । ६. महाभारत १.२५१.२८ में कौमुदिकी को कृष्ण की एक गदा बताया है, जिससे दैत्यों का नाश हो जाता था।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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