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________________ १०२ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज ........ (पुंड्र ) वर्ण वाले घोड़ी के बच्चे को पंचपुंड कहते थे।' घोड़े कवच से सज्जित रहते, उत्तरकंचुक धारण किये रहते, आँखें उनको फूल की कली के समान शुक्ल वर्ण की होती, मुँह पर आभरण लटका रहता, और उनका कटिभाग चामरदण्ड से मंडित रहता। घोड़ों को जीन थिल्ली कही जाती थी। घुड़सवार (आसवार ) आयुधों से लैस रहते । घोड़ों को शिक्षा दी जाती थो।' बहलि (वाह्नीक ) के घोड़ों को शिक्षा देने का उल्लेख मिलता है । शिक्षा देने के स्थान को वाहियालि कहा जाता था। अंश्वदमग, अश्वमेंठ और अश्वारोह शिक्षा देने का काम करते , तथा सोलग घोड़ों की देखभाल किया करते थे। कालिय द्वीप के घोड़े प्रसिद्ध थे। व्यापारी लोग अपने दल-बल सहित घोड़े पकड़ने के लिए यहाँ आया करते। ये लोग वीणा आदि बजाकर, अनेक काष्ठ और गुंथी हुई आकर्षक वस्तुएँ दिखाकर, कोष्ठ, तमाल पत्र, चुवा, तगर, चंदन, कुंकुम, आदि सुंघाकर, खाण्ड, गुड़, शकरा, मिश्री, आदि खिलाकर, कंबल, प्रावरण, जोन, पुस्त आदि छुआकर उन्हें आकृष्ट करते । फिर अश्वमर्दक लगाम ( अहिलाण ), जीन (पडियाण) आदि द्वारा उनके मुँह, कान, नाक, बाल, खुर और टांग बांधकर, कोड़ों से उन्हें वश में करते और लोहे की गर्म सलाई से उन्हें दागते ( अंकणा)। १. निशीथभाष्य १३.४४०८ । २. विपाकसूत्र २, पृ० १३; औपपातिक ३१, पृ० १३२ । ३. कहीं पर दो घोड़ों की गाड़ी को थिल्ली कहा गया है, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका २, पृ० १२३ । ४. आवश्यकचूर्णी पृ० ४८१ । ५. हरिभद्र ने बहलि से लाये हुए घोड़ों को शिक्षा देने का उल्लेख किया है; आवश्यकटीका, पृ० २६१; आवश्यकचूर्णी, पृ० ३४३-४४; तथा राजप्रश्नीयसूत्र १६१ । ६. निशीथचूर्णी ६.२३-२४ । अर्थशास्त्र २.३०.४७.५० में भी इसकी चर्चा है। ७. बृहत्कल्पभाष्य १.२०६६ । ८. ज्ञातृधर्मकथा १७, पृ० २०५।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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