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________________ चौथा अध्याय : सैन्य-व्यवस्था १०१ दौड़ते, शत्रु-सेना पर पहले से ही आक्रमण कर देते, शत्रु की सेना में घुसकर उसे विचलित कर देते, अपनी सेना को तसल्ली देते, और शत्रु द्वारा पकड़े हुए अपने योद्धाओं को छुड़ाते, शत्र के कोष और राजकुमार का अपहरण करते, जिनके घोड़े मर गये हैं ऐसे सैनिकों का पीछा करते तथा भागी हुई शत्रु सेना के पीछे भागते । घोड़े कई किस्म के होते और वे विविध देशों से लाये जाते थे । कंबोज देश के आकीर्ण और कन्थक घोड़े प्रसिद्ध थे। दोनों ही दौड़ने में तेज थे । आकीर्ण ऊँची नस्ल के होते, तथा कंथक पत्थर आदि की आवाज से न डरते थे । दशवैकालिक चूर्णी में अश्वतर और घोटक का उल्लेख मिलता है । वाह्लीक देश में पाये जाने वाले ऊँची नस्ल के घोड़े अश्व कहे जाते, इनका शरीर मूत्र आदि से लिप्त न होता था । विजाति से उत्पन्न खच्चरों को अश्वतर कहा गया है; ये दीलवालिया (?) से लाये जाते थे | सबसे निकृष्ट ( अजच्चजातिजाया ) घोटक कहे जाते थे ।" गलिया अश्व का उल्लेख मिलता है । उसे बार-बार चाबुक मार कर और आरी से चलाने की जरूरत होती थी । वह गायों को देखकर उनके पीछे दौड़ने लगता और रस्सा तुड़ाकर भाग जाता । प्रति वर्ष व्याने वाली घोड़ियों को थाइणी कहा जाता था। पांच स्थानों में श्वेत 1 १. अर्थशास्त्र १०.४.१५३-१५४.१४ । बृहत्कल्पभाष्य ३.३७४७ में घोड़े को बट्टखुर ( वृत्तखुर = गोल खुरवाला ) कहा है । इन्हें प्रधान तुरंग माना जाता था । २. ज्ञातृधर्मकथा की टीका में श्राकीर्ण घोड़ों को 'समुद्रमध्यवर्ती' बताया है । ३. उत्तराध्ययन ११.१६ और टीका; स्थानांग ४.३२७; यहाँ कंथक घोड़ों के चार भेद बताये हैं । धम्मपद अट्ठकथा १, पृ० ८५ में कंथक का उल्लेख है । तथा "देखिये बृहत्कल्पभाष्यटीका ३.३६५६ - ६० । स्थानांगसूत्र में ख लुंक ( विनीत ) घोड़े का उल्लेख है । घोड़ों के आठ प्रकार के दोषों के लिए देखिए अंगुत्तरनिकाय का अस्सखलुंकसुत्त १, ३, पृ० २६७ आदि; ३,८, पृ० ३०१ । ४. जम्बूद्वीपप्रज्ञसिटीका २, पृ० ११० - उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ५७ अ; तथा देखिए रामायण १.६.२२ । ५. ६, पृ० २१३ । ६. उत्तराध्ययनसूत्र १.१२; २७ वाँ खलुंकीय अध्ययन । ७. बृहत्कल्पभाष्य ३.३६५६ आदि । मराठी में घोड़ी को ठाणी कहते हैं ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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