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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
. जंगली हाथियों को पकड़ कर शिक्षा दी जाती थी। विन्ध्याचल के जंगलों में हाथियों के झुण्ड घूमते-फिरते थे ! उन्हें नल के वनों में पकड़ा जाता था। पहले वे अपनी सूण्ड से काष्ठ, फिर छोटे पत्थर, फिर गोलो, फिर बेर और फिर सरसों उठाने का अभ्यास करते। हाथियों को शिक्षा देने वाले दमग उन्हें वश में करते; मेंठ हरे गन्ने, टहनी (यवस) आदि खिलाकर उन्हें सवारी के काम में लेते; और आरोह युद्धकाल में उन पर सवारी करते । कौशाम्बी का राजा उदयन अपने मधुर संगीत द्वारा हाथियों को वश में करने की कला में निष्णात माना जाता था। मूलदेव ने भी वीणा बजाकर एक हथिनी को वश में किया था।' कभी हाथी सांकल तुड़ाकर भाग जाते और नगरी में उपद्रव करने लगते जिससे सर्वत्र कोलाहल मच जाता। ऐसे समय कोई राजकुमार या साहसी पुरुष हाथी को सूंड के सामने गोलाकार लिपटा हुआ उत्तरीय वस्त्र फेंककर उसके क्रोध को शान्त करता। महावत (महामात्र; हत्थिवाउअ ) हस्तिशाला (जड्डशाला) की देखभाल करते । अंकुश की सहायता से वे हाथी को वश में रखते, तथा झूल (उच्चूल), वैजयन्ती ( ध्वजा), माला और विविध अलंकारों से उन्हें विभूषित करते । हाथियों की पीठ पर अम्बारी (गिल्लि") रक्खी जाती, जिस पर बैठा हुआ मनुष्य दिखाई न पड़ता। उन्हें स्तम्भ (आलाण) में बांधा जाता और उनके पांवों में मोटे-मोटे रस्से पड़े रहते ।१
हाथियों की भाँति घोड़ों का भी बहुत महत्व था। वे तेज
१. पिंडनियुक्ति ८३ । कौटिल्य ने ग्रीष्म ऋतु में २० वर्ष या इससे अधिक आयु वाले हाथियों को पकड़ने का विधान किया है, अर्थशास्त्र २.३१.४८.७ ।
२. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका २३१ । ३. निशीथचूर्णी ६.२३-२५ तथा चूर्णी । ४. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६१ । ५. उत्तराध्ययनटीका, ३, पृ० ६० । ६. वही, १३, पृ० १८६, १६५; ४, पृ० ८५ । ७. व्यवहारभाष्य १०.४८४ । ८. दशवैकालिक २.१०; उत्तराध्ययनटीका ४, पृ०८५ । ६. औपपातिक ३०, पृ० ११७ । १०. राजप्रश्नीय ३, पृ० १७ । ११. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ०८५ ।