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कोसल के नौ लिच्छवी
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चौथा अध्याय : सैन्य-व्यवस्था अपने आज्ञाकारी काशी के नौ मल्लकी और राजाओं को बुलाकर उनके साथ मंत्रणा की सब लोग इस निर्णय पर पहुँचे कि शरणागत की रक्षा करना क्षत्रिय का धर्म है । युद्ध की घोषणा कर दी गयी । दोनों ओर से घमासान युद्ध हुआ । चेटक ने काल, सुकाल आदि राजकुमारों को मार गिराया । लेकिन अन्त में गणराजा हार गये, और चेटक भागकर नेपाल चला गया ।'
राजा श्रेणिक के उदायो और भूतानन्द नाम के दो और हाथी ये ।' युद्ध में पराजित होने के बाद चेटक ने सेचनक को जलते अंगारों के गड्ढे में गिराकर मार डाला; उसकी जगह कूणिक ने भूतानन्द को पट्टहस्ति के पद पर अभिषिक्त किया। कौशाम्बी के राजा उदयन की हथिनी का नाम भद्रावती था । इस पर वासवदत्ता को बैठाकर वह उसे उज्जयिनी से हरण करके लाया था । विजयगंधहस्ति कृष्ण का प्रसिद्ध हाथों था, इस पर बैठकर वे भगवान् नेमिनाथ के दर्शन के लिए जाते थे । प्रद्योत के नलगिरि का उल्लेख किया जा चुका है । उसके मूत्र और पुरोष की गंध से हाथी उन्मत्त हो उठते थे ।
हाथियों को सन्नद्ध-बद्ध करके, उज्ज्वल वस्त्र, कवच, गले के आभूषण और कर्णपूर पहना, उर में रज्जू बांध, उन पर लटकती हुई झूलें डाल, छत्र, ध्वजा और घंटे लटका, अस्त्र-शस्त्र तथा ढालों से शोभित किया जाता वा । कोई सहस्रयोधी कवच पहन, हाथी पर बैठकर युद्ध कर रहा था । इतने में वृक्ष पर छिप कर बैठे हुए शत्रुपक्ष के किसी सैनिक द्वारा छोड़ा हुआ तीर उसके आकर लगा। उसे देखते ही सहस्रयोधी ने अर्धचन्द्र से उसका सिर काट दिया । "
१. श्रावश्यकचूर्णी २, पृ० १७२ - ३; निरयावल १ ।
२. व्याख्याप्रज्ञप्ति १७.
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३. श्रावश्यकचूणीं, वही ।
४. वही २, पृ० १६१ आदि ।
५. ज्ञातृधर्मकथा ५, पृ० ७० ।
६. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २५३ ; पृ० ८६ ।
७. विपाकसूत्र २, पृ० १३; श्रपपातिक ३०, पृ० ११७, ३१, पृ० १३२ । तथा देखिए रामायण १.५३.१८ ।
८. निशीथचूर्णी ११.३८१६ की चूर्णी ।