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१८. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज ..... . नाम सेचनक था । सेचनक ऋषियों के आश्रम में पैदा हुआ था, और ऋषि-कुमारों के साथ अपनी सूंड़ में पानी भरकर, पुष्पाराम का सिंचन किया करता था। बड़े होने पर सेचनक ने यूथाधिपति को मार दिया
और आश्रमं को नष्ट कर डाला। यद देखकर आश्रम के तपस्वियों ने उसे राजा श्रेणिक को सौंप दिया।' श्रेणिक ने अपने जीते-जी सेचनक हाथी और अठारह लड़ी का हार कुणिक को न देकर उसके भाई वेहल्लकुमार को दे दिया था। वेहल्ल कुमार अन्तःपुर की रानियों को हाथी पर बैठाकर गङ्गा में स्नान करने ले जाता। सेचनक रानियों को कभी सूण्ड से उठाता, कभी पीठ, कभी स्कंध, कभी कुम्भ, कभी सिर और कभी अपने दांतों पर बैठाता, कभी सूण्ड से उछालता, कभी दांतों के बीच पकड़ लेता और कभी सूण्ड में जल भर उन्हें स्नान कराता । यह देखकर कूणिक की रानी पद्मावती को बड़ी ईर्ष्या हुई । उसने कूणिक से हाथो को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। कूणिक ने एक दिन वेहल्ल को बुलाकर उससे हाथी और हार मांगा। लेकिन वेहल्ल ने उत्तर दिया कि यदि वह आधा राज्य देने को तैयार हो तो वह दोनों चीजें उसे दे सकता है। देहल्ल के मन में शंका हो गयी और चम्पा छोड़कर वह अपने नाना चेटक के पास वैशाली में जाकर रहने लगा। कूणिक ने चेटक के पास दूत भेजकर हाथी और हार लौटा देने का अनुरोध किया, लेकिन चेटक ने उत्तर में कहला भेजा कि मेरे लिए तो दोनों एक-जैसे हैं, तथा यदि तुम आधा राज्य देने को तैयार हो तो हाथी और हार मिल सकते है। कूणिक ने दूसरी बार दूत भेजा
चेटक ने फिर वही उत्तर दिया। ... यह देखकर कृणिक को बहुत क्रोध आया। उसने तीसरी बार दूत भेजा। अब की बार दूत ने अपने बायें पैर से राजा के सिंहासन का अतिक्रमण कर, भाले की नोक पर पत्र रखकर चेटक को समर्पित किया। युद्ध के लिए यह खुला आह्वान था। कूणिक ने काल, सुकाल
आदि राजकुमारों को बुलवाकर युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया। कूणिक ने आभिषेक्य हस्तिरत्न को सजवाया और बीच-बीच में पड़ाव डालते हुए अपने दल-बल के साथ वैशाली पहुँच गया। उधर चेटक ने
१. श्रावश्यकचूर्णी २, पृ० १७० आदि ।
२. कौटिल्य, अर्थशास्त्र १.१६.१२.१६ में राजा को दूतमुख (दूतों के द्वारा अपनी बात दूसरों को सुनाने वाले ) कहा है।