SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथा अध्याय : सैन्य-व्यवस्था ६७ दोषरहित नखों वाला होता है। भद्र, मन्द, मृग और संकीर्ण, ये हाथी के चार भेद बताये गये हैं। इनमें भद्र हाथी सर्वोत्तम भाना जाता था । वह मधु-गुटिका की भाँति पिंगल नत्र वाला, सुन्दर और दीघे पूँछ वाला, अग्रभाग में उन्नत तथा सर्वांग-परिपूर्ण होता था। सरोवर में वह क्रीड़ा करता और दाँतों से प्रहार करता। मन्द हाथी शिथिल, स्थूल, विषम त्वचा से युक्त, स्थूल शिर, पूँछ, नख और दन्त वाला तथा हरित और पिंगल नेत्रों वाला होता था। धैर्य और वेग आदि में मन्द होने के कारण उसे मन्द कहा गया है। वसन्त ऋतु में वह जलक्रीड़ा करता और सूंड से प्रहार करता । मृग हाथी कृश होता, उसको ग्रीवा, त्वचा, दाँत और नख कृश होते, तथा वह भीरु और उद्विग्न होता । हेमन्त ऋतु में वह जलक्रीड़ा करता, और अधरों से प्रहार करता । संकोण हाथी इन सबकी अपेक्षा निकृष्ट माना जाता था। वह रूप और स्वभाव से संकीर्ण होता तथा अपने समस्त अंगों से प्रहार करता । शशि, शंख और कुन्दपुष्प के समान धवल हाथी का उल्लेख किया गया है। गंडस्थल से उसके मद प्रवाहित होता रहता और बड़े-बड़े वृक्षों को वह उखाड़ता हुआ चला आता।" हस्तियूथ का उल्लेख मिलता है। ये हाथी जंगल के अगाध जल से पूर्ण तालाबों का जलपान कर विचरण किया करते थे। हाथी की आयु साठ वर्ष (सडिहायन) की बतायी है। राजा अपने हाथियों के विशिष्ट नाम रखते थे। राजा श्रेणिक के हाथी का १. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० ३५।। २. सरोवर में स्नान करने के बाद अपने शरीर पर धूल डालने वाले हाथियों का उल्लेख है, बृहत्कल्पभाष्य १.११४७ । ३. अर्थशास्त्र २.३१.४८.६ में सात हाथ ऊँचे, नौ हाथ लम्बे और दस हाथ मोटे चालीस वर्ष की उम्र वाले हाथी को सर्वोत्तम कहा है। ४. स्थानांग ४.२८१; तथा ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० ३६ । तथा देखिये बृहत्संहिता का हस्तिलक्षण (६६) नामक अध्याय; अर्थशास्त्र २.३१.४८ । सम्मोहविनोदिनी ( पृ० ३६७ ) में दस प्रकार के हाथी बताये गये है:कालावक, गंगेय्य, पंडर, तंब, पिंगल, गंध, मंगल, हेम, उपोसथ, छद्दन्त । तथा देखिये रामायण १.६.२५ । ५. उत्तराध्ययनटीका, ४, पृ० ६० अ%; ९, पृ० १०४ । ६. निशीथचूर्णी १०.२७८४ चूर्णी, पृ० ४१ । ७ जै० भा०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy