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चौथा अध्याय : सैन्य-व्यवस्था
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घोड़े पर चढ़कर लोग अश्ववाहनिका'
के लिए जाते। लंघन ( कूदना ), वल्गन ( गोलाकार घूमना ), उत्प्लवन, धावन, धोरण ( दुलकी, सरपट आदि चाल से चलना ), त्रिपदी ( जमीन पर तीन पैर रखना', जविनी (वेगवती) और शिक्षिता गतियों से घोड़े चलते । सर्व लक्षणों से सम्पन्न घोड़ों के उल्लेख मिलते हैं । सामंत राजाओं की इन घोड़ों पर आँखें लगी रहती थीं । घोड़ों को अश्वशाला में रक्खा जाता, तथा यत्रस और तुष' आदि उन्हें खाने के लिए दिये जाते । सनत्कुमार चक्रवर्ती अपने जलधिकल्लोल नामक घोड़े पर सवार होकर भ्रमण किया करता था । वह पंचमधारा गति से इतना शीघ्र भागता कि क्षण भर में अदृश्य हो जाता । भरत चक्रवर्ती के अश्वरत्न का नाम कमलामेला था ।
पदाति चतुरंगिणी सेना का मुख्य अङ्ग था । कौटिल्य ने मौल (स्थानीय), भृत ( वेतनभोगी ), श्रेणि ( प्रान्त में भिन्न-भिन्न स्थानों पर रहने वाले), मित्रबल, अमित्रबल ( शत्रु सेना ) और अटवीबल नाम के पदातियों का उल्लेख किया है । वे लोग हाथ में तलवार, भाला, धनुष, बाण आदि लेकर चलते तथा बाण आदि के प्रहार से रक्षा के लिए सन्नद्ध-बद्ध होकर, वर्म और कवच धारण किये रहते, भुजाओं पर चर्मपट्ट बांधे रहते तथा उनकी ग्रीवा आभरण और मस्तक वीरतासूचक पट्ट से शोभित रहता । " योद्धा लोग धनुष-बाण चलाते समय आलोढ, प्रत्यालीढ, वैशाख, मंडल और समपाद नाम के आसन स्वीकार करते थे ।
१. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० १०३ ।
२. औपपातिक सूत्र ३१, पृ० १३२; उत्तराध्ययन ४.८ की टीका, पृ० ६६; तथा देखिए अर्थशास्त्र, २.३०.४७.३७–४३ ।
३. निशीथभाष्य २०.६३६६ की चूर्णी ।
४. व्यवहारभाष्य १०.४८४ । अश्वशाला के लिए देखिए कौटिल्य, अर्थशास्त्र २.३०.४७.४-५ ।
५. उत्तराध्ययनटीका ४, ५०६६ ।
६. वही, १८, पृ० २३६ अ ।
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७. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० १६६ ।
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८. अर्थशास्त्र, २.३३.४६-५१.६ ।
६. श्रपपातिक ३१, पृ० १३२; विपाकसूत्र २, पृ० १३ । १०. निशीथभाष्य २०.६३०० ।