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________________ में स्थित कज़ोलक नाम पड़ा। इसी प्रकार दढभूमि ( दृढभूमि = कठिन भूमि ) का उल्लेख प्राचीन जैन सूत्रों में आता है; भगवान महावीर ने यहां विहार किया था। इसकी पहचान आधुनिक धालभूम से की जा सकती है। लोहग्गला राजधानी का उल्लेख भी महावीरचर्या के प्रसंग में आता है। इसकी पहचान छोटा नागपुर डिवीजन के लोहरडग्गा (मुण्डा भाषा में रोहोर = सूखा, ड = पानी, अर्थात् यहां पानी का एक झरना था जो बाद में सूख गया ) स्थान से की जा सकती है। सन १८४३ तक लोहरडरमा एक स्वतंत्र जिला था जिसमें रांची और पलामू जिले सम्मिलित थे। दो नदियों के संगम पर बसा होने के कारण यह व्यापारिक नगर रहा है। आजकल यह बंगाल राज्य में चला गया है। उच्चानागरी जैन श्रमणों की एक प्राचीन शाखा थी। उच्चानगर की पहचान बुलन्दशहर ( उच्चा = बुलंद, नगर = शहर ) से की जा सकती है। चौदहवीं शताब्दी के जैन विद्वान् जिनप्रभसूरि के समय से ही श्रावस्ती महेठि नाम से कही जाने लगी थी, जबकि कनिंघम ने बाद में चलकर उसकी पहचान सहेट-महेट से की। इनमें सहेट गोंडा जिले में और महेट बहराइच जिले में पड़ता है। इसके अतिरिक्त, भूगोल और इतिहास विषयक और भी महत्वपूर्ण सामग्री यहाँ उपलब्ध होती है। उदाहरण के लिए, व्यवहारभाष्य में देश-देश के लोगों की चर्चा के प्रसंग में कहा है- "मगध के निवासी किसी बात को इशारे-मात्र से समझ लेते हैं, जबकि कोसल देशबासी उसे देखकर, पांचालवासी आधा सुन लेने पर और दक्षिणापथ के वासी साफ-साफ कह देने पर ही समझ पाते हैं।" इसी ग्रन्थ में अन्यत्र उल्लेख है कि “आन्ध्र के निवासियों में अक्रूर, महाराष्ट्र के निवासियों में अवाचाल और कोसल के निवासियों में निष्पाप, सौ में से एकाध ही मिलेगा।" लाट और महाराष्ट्र के वासियों में अक्सर झगड़े झंझट हो जाया करते थे; लाट वासियों को मायावी कहा गया है । बौद्ध सूत्रों को अट्ठकथाओं के कर्ता बुद्धघोष ने भी अपनी टीकाओं में अनेक ग्राम, नगर आदि की व्युत्पत्ति देते हुए उनका उल्लेख किया है। राजगृह में स्थित गृध्रकूट के सम्बन्ध में कहा है कि इस पहाड़ी की चोटी का आकार गीध की चोंच के समान था, अथवा इस पर गीध निवास करते थे, इसलिए इसका यह नाम पड़ा। नालन्दा में भिक्षा देने वाले दानी उपासक भिक्षा देकर कभी तृप्त न होते थे ( न अलं ददाति ), इसलिए इसका नालंदा नाम पड़ा। श्रावस्ती नगरी में सब कुछ मिलता था ( सावथि -सब्बं अत्थि) इसलिए यह श्रावस्ति कही जाने लगी। इसी प्रकार इसिपतन मिगदाय ( ऋषिपतन मृगदाव ) के सम्बन्ध में कहा है कि यहाँ ऋषिगण हिमालय से उतर कर आते थे, इसलिए
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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