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कोई नट नहीं कहा जा सकता, नायक के बिना कोई रूपवती स्त्री नहीं रह सकती, और गाड़ी के धुरे के बिना पहिया नहीं चल सकता, इसी प्रकार आचार्य के बिना कोई गण नहीं चल सकता ।" लेकिन कभी कोई आचार्य बहुत अनुशासन-प्रिय होते थे, अथवा साधु प्रमाद के कारण अनुशासन में रहना पसन्द नहीं करते थे । ऐसी दशा में आचार्य के पुनः - पुनः आवागमन के कारण साधु को बार-बार उठना-बैठना पड़ता था जिससे उसकी कमर ही टूट जाती थी और छोटीछोटी बातों के लिए उसे भर्त्सना सहन करनी पड़ती थी। इस परिस्थिति में कभी वह एक गच्छ को छोड़कर दूसरे गच्छ में जाकर रहने लगता था । कभी तो आपसी लड़ाई-झगड़ा इतना बढ़ जाता कि हाथापाई या लाठी का प्रयोग करने या दांतों से काट लेने तक की नौबत आ जाती थी। ऐसी दशा में आचार्य के लिए बताया गया है कि " जैसे एक ही खम्भे से दो मदोन्मत्त हाथियों को नहीं बांधा जाता, या दो व्याघ्रों को एक पिंजरे में नहीं रक्खा जाता, उसी प्रकार एक कलहशील साधु को दूसरे कलहप्रिय साधु के साथ न रहने दे ।” बौद्धों के महावग्ग के अन्तर्गत कोसंबकक्खंधक में कौशाम्बी के बौद्ध भिक्षुओं की कलह का उल्लेख है जिसे शान्त करने के लिए स्वयं बुद्ध को कौशाम्बी जाना पड़ा था।
महावीर और बुद्ध लगभग एक ही काल और एक ही प्रदेश में आविभूति हुए, तथा दोनों का उद्देश्य वर्ण-व्यवस्था, और हिंसामय यज्ञ-याग आदि को अस्वीकार कर सर्वसामान्य के लिए निवृत्तिप्रधान श्रमण सम्प्रदाय का प्रचार करना ही था । ऐसी हालत में दोनों सम्प्रदायों में समानता का पाया जाना स्वाभाविक है । यह समानता केवल विषय-वस्तु के वर्णन तक ही सीमित नहीं, बल्कि कितनी गाथायें और शब्दावलि भी दोनों धर्मों में एक जैसी है । इस दृष्टि से प्राचीन जैन और बौद्ध धर्म का तुलनात्मक वैज्ञानिक अध्ययन बहुत ही मनोरंजक और उपयोगी सिद्ध होगा, इसमें सन्देह नहीं ।
जैन और बौद्ध ग्रन्थों में भौगोलिक सामग्री भी कुछ कम बिखरी नहीं पड़ी है । इनके अध्ययन से अनेक महत्वपूर्ण स्थानों का पता लगता है और ये ऐसे स्थान हैं जिनके सम्बन्ध में हमें अन्यत्र जानकारी नहीं मिलती । उदाहरण के लिए, जैन सूत्रों में पुण्ड्रवर्धन और कयंगल ( कंकजोल ) का उल्लेख आता है । इनकी पहचान के लिए हमें अपने देश की पैदावार की ओर ध्यान देना आवश्यक है । बंगाल में दो प्रकार के गन्ने होते थे, एक पीले रंग के ( पुण्ड्र पौडे ) और दूसरे काले रंग के ( काजलि अथवा कजोलि ) । यहां यह उल्लेखनीय है कि 'पुण्ड्र' से गंगा के पूर्व में स्थित पुण्ड्र देश और 'कजोलि' से गङ्गा के पश्चिम
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