SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गर्भवती ब्राह्मणी के घर वह भिक्षा के लिए गया, और अंधेरा होने के कारण कील पर गिर जाने से ब्राह्मणी की मृत्यु हो गयी। कहना न होगा कि उत्तर बिहार आज भी कुत्ते, गीदड़ और सांपों के भयंकर उपद्रव से ग्रस्त है। इसी प्रकार रोग आदि की अवस्था में जैन और बौद्धों के प्राचीन सूत्रों में चमड़े के जूते धारण करने का उल्लेख है । महावग्ग के चम्मक्खंधक में कहा है कि लकड़ी की पादुकाएं पहनने से खटखट की बहुत आवाज होती है, इसलिए बुद्ध ने भिक्षुओं को काष्ठ पादुकाएं धारण करने का निषेध कर दिया। इसी तरह, अवन्ति दक्षिणापथ की भूमि काली होती थी और वह गोखरूओं से व्याप्त रहती थी, यह देखकर भगवान् बुद्ध ने स्नान करने और जूता पहनने की अनुज्ञा अपने भिक्षओं को दी। प्राचीन जैनसूत्रों में कोंकण आदि अत्यधिक वर्षा वाले प्रदेशों में छाता लगाने का विधान किया गया है, यद्यपि सामान्यतया जैन श्रमण के लिए छाते का निषेध ही है । इसी प्रकार मंत्रप्रयोग और भौषध आदि ग्रहण करने के सम्बन्ध में भी अनेक अपवाद-नियमों का उल्लेख है । ... श्रमणों के लिए लोकव्यवहार का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक बताया है । शुद्ध होने पर भी यदि कोई बात लोक के विरुद्ध हो तो उसे अस्वीकार करने का ही विधान हैं ( यद्यपि शुद्धं लोकविरुद्ध नाकरणीयं नाचरणीयं ).. जैन श्रमणों के लिए विशेष कर जनपद-परीक्षा द्वारा विभिन्न प्रदेशों के रीति-रिवाज आदि को जानना अत्यन्त आवश्यक कहा है, नहीं तो निग्रन्थ प्रवचन के हास्यास्पद होने की सम्भावना है। इसके लिए जैन साधुओं को विभिन्न देशों की भाषा में कुशलता प्राप्त करना चाहिए जिससे कि वे लोगों को उनकी भाषा में उपदेश दे सकें। साधुओं को इस बात की जानकारी भी आवश्यक है कि कौन-से देश में किस प्रकार से धान्य की उत्पत्ति होती है, कहाँ बनिज-व्यापार से आजीविका चलती हे, कहां के लोग मांसभक्षी होते हैं, कहाँ रात्रि-भोजन करने का रिवाज है, और कहाँ के लोग शुद्धाशुद्धि का बहुत विचार नहीं करते। इससे पता लगता है कि जैन श्रमण लोकाचार से सम्बन्ध रखने वाली छोटी-छोटी बातों का भी बहुत ध्यान रखते थे। यद्यपि जैन और बौद्ध संघ को व्यवस्था का आदर्श वैशाली और उसके आसपास के वज्जी आदि गणों की जनतांत्रिक व्यवस्था पर आधारित है, फिर भी मानव स्वभाव के कारण जैन और बौद्ध श्रमणों के बीच अनेक विवादास्पद विषयों को लेकर मतभेद हो जाता था, और कभी तो यह मतभेद कलह का उग्र रूप धारण कर लेता था। जैन सूत्रों में उल्लेख है कि "जैसे नृत्यकला के बिना
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy