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चौथा अध्याय : सैन्य-व्यवस्था
६५ की ओर बढ़े और यहाँ शिलापट्ट पर काकणी रत्न से उन्होंने अपने प्रथम चक्रवर्ती होने की लिखित घोषणा की। वैताढ्य के उत्तरखण्ड में निवास करने वाले नमि और विनमि नाम के विद्याधर राजाओं ने सुभद्रा नामक स्त्रीरत्न भेंट कर उन्हें सम्मानित किया। उसके बाद गंगा नदी पार करते हुए वे गंगा के पश्चिमी किनारे पर अवस्थित खण्डप्रपात गुफा में आये और अपने सेनापति को उन्होंने इस गुफा का उत्तरी द्वार खोलने का आदेश दिया। यहाँ उन्हें नवनिधियों की प्राप्ति हुई। अन्त में चतुर्दश रत्नों से विभूषित हो भरत चक्रवर्ती विनीता ( अयोध्या ) राजधानी को लौट गये जहाँ बड़ी धूमधाम से उनका राज्याभिषेक किया गया।
चतुरंगिणी सेना . युद्ध में सफलता प्राप्त करने के लिए रथ, अश्व, हस्ति और पदाति अत्यन्त उपयोगी होते थे। कन्या के विवाह में ये वस्तुयें दहेज में दी जाती थीं। इनमें रथ का सबसे अधिक महत्त्व था। यह छत्र, ध्वजा, पताका, घण्टे, तोरण, नन्दिघोष और क्षुद्र घण्टिकाओं से मण्डित किया जाता । हिमालय में पैदा होनेवाले सुन्दर तिनिस काष्ठ द्वारा निर्मित होता और इसपर सोने की सुन्दर चित्रकारी बनी रहती। इसके चक्के और धुरे मजबूत होते तथा चक्कों का घेरा मजबूत लोहे का बना होता । इसमें जातवंत सुन्दर घोड़े जोते जाते और सारथि रथ को हांकता । धनुष, बाण, तूणीर, खड्ग, शिरस्त्राण आदि अस्त्र-शस्त्रों से यह सुसज्जित रहता। रथ अनेक प्रकार के बताये गये हैं। संग्रामरथ कटीप्रमाण फलकमय वेदिका से सज्जित होता, जब कि यानरथ पर यह वेदिका न होती। कर्णीरथ एक विशिष्ट प्रकार का रथ था जिसपर
१. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ३.४१-७१; श्रावश्यकचूर्णी, पृ० १८२-२२८; उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २३२-अ आदि; वसुदेवहिण्डी पृ० १८६ आदि; तथा देखिए महाभारत १.१०१ ।
२. उत्तराध्ययनटीका ४ पृ० ८८ ।
३. औपपातिक सूत्र ३१, पृ० १३२; आवश्यकचूर्णी पृ० १८८; बृहत्कल्पभाष्य पीठिका २१६; तथा देखिए रामायण ३.२२.१३ आदि; महाभारत ५.६४.१८ आदि ।
४. मलधारि हेमचन्द्र, अनुयोगद्वारटीका, पृ० १४६ ।