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तीसरा अध्याय : अपराध और दण्ड
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पर उनके पैर में रस्सी बांध उन्हें खाई में फेंक दिया जाता । भेड़िए, कुत्ते, गीदड़ और मार्जार वगैरह उन्हें भक्षण कर जाते ।'
जेलखाने में तांबे, जस्ते, शीशे, चूने और क्षार के तेल से भरी हुईं लोहे की कुंडियां गर्म करने के लिए आग पर रक्खी रहतीं, और बहुत से मटके हाथी, घोड़े, गाय, भैंस, ऊँट, भेड़ और बकरी के मूत्रों से भरे रहते । हाथ-पैर बांधने के लिए यहाँ अनेक काष्ठमय बंधन खोड़, बेड़ी, श्रृंखला; मारने पीटने के लिए बांस, बेंत, वल्कल और चमड़े के कोड़े; कूटने-पीटने के लिए पत्थर की शिलाएँ, पाषाण और मुद्गर; बांधने के लिए रस्से; चीरने और काटने के लिए तलवार, आरियां और छुरे; ठोकने के लिए लोहे की कीलें, बांस की खप्पचें; चुभाने के लिए सूई और लोहे की शलाकाएँ; तथा काटने के लिए छुरी, कुठार, नखच्छेद और दर्भतृणों आदि का उपयोग किया जाता था ।
सिंहपुर नगर में दुर्योधन नाम का एक दुष्ट जेलर रहा करता था । वह जेल में पकड़कर लाए हुए चोरों, परस्त्री-गामियों, गँठकतरों, राजद्रोहियों, ऋणग्रस्तां, बालघातकों, विश्वासघातकों, जुआरियों, और धूर्तों को अपने कर्मचारियों से पकड़वा, उन्हें सीधा लिटवाता और लोहदण्ड से उनके मुंह खुलवाकर उनमें गर्म-गर्म तांबा, खारा तेल, तथा हाथी-घोड़ों का मूत्र डालता । अनेक कैदियों को उलटा लिटवाकर, उन्हें खूब पिटवाता, किसी के हाथ-पैर काष्ठ और श्रृंखला में बँधवा देता, हाथ, पैर, नाक, ओंठ, जीभ आदि कटवा लेता, किसी को वेणु लता से पिटवाता, उनकी छाती पर शिला रखवा और दोनों ओर से दो पुरुषों से लाठी पकड़वाकर जोर-जोर से हिलवाता । उनका सिर नीचे और पैर ऊपर करके गड्ढे में से पानी पिलवाता, असिपत्र आदि से उनका विदारण करवाता, क्षार तेल को उनके शरीर पर चुपड़वाता, उनके मस्तक, गले की घण्टी, हथेली, घुटने और पैरों के जोड़ में लोहे की कीलें ठुकवाता, बिच्छू जैसे काँटों को शरीर में घुसाता, सूई आदि को हाथों-पैरों की उँगलियों में ठुकवाता, नखों से भूमि खुदवाता, नखच्छेदक आदि द्वारा शरीर को पीड़ा पहुँचवाता, घावों पर गीले दर्भकुश बँधवाता और उनके सूख जाने पर तड़तड़ की आवाज से उन्हें
उखड़वाता ।
१. प्रश्नव्याकरण १२, पृ० ५५ श्रादि । २. विपाकसूत्र ६, पृ० ३६-३८ ।