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________________ ८८ __जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज काम न कर सके तो उन्हें निर्वासित कर दिया ।' राजकुमार मल्लदिन्न ने किसी चित्रकार को प्राणदण्ड की आज्ञा सुनाई। कोई वैद्य किसी राजपुत्र को निरोग न कर सका, अतएव उसे प्राणों से हाथ धोना पड़ा। अपराधियों को अपना निवास स्थान छोड़कर, चाण्डालां के मुहल्ले में रहने का भी दण्ड दिया जाता था।' ___ चोरी का पता लगाने के लिए विविध उपायों को काम में लिया जाता । साधु दो प्रकार के चावल बांटते, एक खालिस चावल और दूसरे मोरपंख मिश्रित चावल । कोई साधु सब गृहस्थों को एक पंक्ति में बैठाकर उनकी अंजलि में पानी डालता। फिर जिस साधु ने चोर को चोरी करते हुए देखा है उसे खालिस चावल देता, और जिसने चोरी की है उसे मोरपंख मिश्रित चावल देता।" ___ कितनी हो बार जैन-साधुओं को भी दण्ड का भागी होना पड़ता। यदि उन्हें कभी कोई वृक्ष के फल आदि तोड़ते हुए देख लेता तो हाथ, पांव, या डण्डे आदि से उनकी ताड़ना की जाती, अथवा उनके उपकरण छोन लिये जाते, या उन्हें पकड़कर राजकुल के कारणिकों के पास ले जाया जाता, और अपराध सिद्ध हो जाने पर घोषणापूर्वक उनके हाथ-पैर आदि का छेदन कर दण्ड दिया जाता।६ जेलखाने ( चारंग) जेलखानों की अत्यन्त शोचनीय दशा थी और उनमें कैदियों को दारुण कष्ट दिये जाते थे। कैदियों का सर्वस्व अपहरण कर उन्हें जेलखाने में डाल दिया जाता, और क्षुधा, तृषा और शीत-उष्ण से व्याकुल हो उन्हें कष्टमय जीवन व्यतीत करना पड़ता। उनके मुख की छांव काली पड़ जाती, खांसी, कोढ़ आदि रोगों से वे पीड़ित रहते, नख, केश और रोम उनके बढ़ जाते तथा अपने ही मल-मूत्र में पड़े वे जेल में सड़ते रहते । उनके शरीर में कीड़े पड़ जाते, और उनका प्राणान्त होने १. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १०५ | २. वही पृ० १०७ । ३. बृहत्कल्पभाष्य ३.३२५६ श्रादि । ४. उत्तराध्ययनटीका, पृ० १६०-अ। ५.बृहत्कल्पभाष्य ३.४६३८ । ६. वही १.६००,६०४-५ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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