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________________ तीसरा अध्याय : अपराध और दण्ड ८७ ही अपनी सेना लेकर उसने प्रस्थान किया और सौभाग्य से उसने दोनों ही मथुराओं को जीत लिया। विजय का समाचार जब राजा के पास पहुँचा तो उसके हष का पारावार न रहा। इसी समय पुत्र-जन्म और निधि के लाभ के शुभ समाचार भी राजा को मिले। इससे राजा हर्ष से उन्मत्त हो उठा और अपने शयन, स्तम्भ और प्रासाद की वस्तुओं को कूटने-पीटने लगा। मंत्री ने देखा कि यह अच्छी बात नहीं, उसने राजा को बोध प्राप्त कराने के लिए प्रासाद के खम्भे आदिको तोड़ना शुरू कर दिया। यह देखकर राजा को बड़ा क्रोध आया, और उसने मन्त्री को प्राणदण्ड की आज्ञा दी। इसी प्रकार वाराणसी के राजा शंख ने, कुछ साधारण-सा अपराध हो जाने पर नमुचि नामक अपने मंत्री का प्रच्छन्न रूप से वध करने का आदेश दिया । एक बार इन्द्र-महोत्सव पर राजा ने घोषणा करायी कि सब लोग नगर के बाहर जाकर महोत्सव मनायें । लेकिन किसी पुरोहित के पुत्र ने इस आदेश की परवा न की, और वह वेश्या के घर में छिप गया। पता लगने पर राजपुरुषों ने उसे गिरफ्तार कर लिया। पुरोहित अपने पुत्र की रक्षा के लिए अपना सारा धन अपेण करने को तैयार हो गया. लेकिन राजा ने एक न सुनी और उसे शूली पर चढ़वा दिया। रत्नकूट नगर के राजा रत्नशेखर ने नागरिकों को आज्ञा दी कि वे अपनीअपनी स्त्रियों सहित नगर के बाहर जाकर कौमुदी-उत्सव मनायें। किसी गृहस्थ के पुत्रों ने राजा की आज्ञा का पालन न किया, और वे अपने घर में बैठे रहे । पता लगने पर राजा ने उन्हें प्राणदण्ड को आज्ञा दी। बहुत अनुनय-विनय करने पर छः में से केवल एक पुत्र को रक्षा हो सकी । मिथिला के राजा कुम्भक ने राजकुमारी मल्ली के टूटे हुए कुण्डल जोड़ने के लिए नगर की सुवर्णकार-श्रेणी को बुलाया, और जब वे यह १. बृहत्कल्पभाष्य ६.६२४४-४६ । २. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० २८५-श्र; राजा द्वारा अपने मंत्रियों को दण्ड दिये जाने के सम्बन्ध में देखिए महाबोधिजातक ( ५१८)। ३. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ०८२-अ। ४. सूत्रकृताङ्गटीका २.७, पृ० ४१३ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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