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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
देख, शकटार ने अपने पुत्र को समझा-बुझाकर उसे अपनी ( शकटार की) हत्या करने के लिए बाध्य किया जिससे मन्त्रीकुल की रक्षा हो सके ।' महामन्त्री चाणक्य को भी नन्द का कोपभाजन होना पड़ा । नन्दका मन्त्री सुबन्धु चाणक्य से मन-ही-मन बहुत द्वेष रखता था। एक बार उसने राजा के पास जाकर झूठमूठ कह दिया कि चाणक्य ने राजमाता का वध कर दिया है । राजा ने धाई से पूछा; धाई ने सुबन्धु की बात का समर्थन किया। अगले दिन चाणक्य जब राजा के पादवंदन के लिए आया तो राजा ने उसकी ओर देखा भी नहीं । चाणक्य समझ गया कि अब जीवित रहना कठिन है । इसलिये अपने पुत्र-पौत्रों में धन का बंटवारा कर वह जंगल में गया और अग्नि में जलकर इङ्गिनीमरण द्वारा उसने प्राण त्याग दिये ।
नन्द राजाओं की भांति मौर्यवंश को आज्ञा भी अप्रतिहत समझी जाती थी । चन्द्रगुप्त जब पाटलिपुत्र के राज्य पर अभिषिक्त हुआ तो कतिपय क्षत्रिय लोग उसे मयूरपोषकों की सन्तान समझकर उसकी अवहेलना करने लगे । इस पर चाणक्य ने क्रोध में आकर क्षत्रियों के गाँवों में आग लगवा दी। 3
बृहत्कल्पभाष्य में प्रतिष्ठान के राजा शालिवाहन की कथा आती है । एक बार उसने अपने दण्डनायक को मथुरा जीतकर लाने का आदेश दिया। लेकिन मथुरा नाम के दो नगर थे, एक उत्तर मथुरा और दूसरा दक्षिण मथुरा ( आधुनिक मदुरा ) । दण्डनायक समझ न सका कि राजा का अभिप्राय कौन-से नगर से है । दुविधा- दुविधा में
१. वही, पृ० १८४ |
२. दशवैकालिक चूर्णी, पृ० ८१ आदि । हेमचन्द्र के स्थविरावलिचरित ( ८. ३७७ - ४१४ ) में चन्द्रगुप्त की रानी दुर्धरा की कथा आती है । वह गर्भवती थी और राजा के साथ बैठकर भोजन कर रही थी । चाणक्य के श्रादेशानुसार राजा के भोजन में किञ्चित् मात्रा में विष मिश्रित किया जाता था जिससे राजा के शरीर पर विष का असर न हो, लेकिन विष का प्रभाव दुर्धरा के शरीर में फैलते देर न लगी । चाणक्य ने फौरन ही रानी का पेट चाक कर उसमें से बालक को निकाल लिया । तथा तुलना कीजिए बिन्दुसार के सम्बन्ध में बौद्धपरम्परा, मलालसेकर, डिक्शनरी व पालि प्रोपर नेम्स, भाग २, 'बिन्दुसार' ।
३. बृहत्कल्पभाष्य १.२४८६; तथा निशीथभाष्य १६ . ५१३६ की चूर्णी ।