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तीसरा अध्याय : अपराध और दण्ड
८५ देना चाहिए, यदि कोई गृहपति-परिषद् का अपमान करे तो उसे घास-फूस में लपेटकर जला देना चाहिए, लेकिन यदि कोई क्षत्रियपरिषद् का अपमान करे तो उसके हाथ और पैर काटकर उसे शूली पर चढ़ाकर, एक झटके से मार डालना चाहिए ।२ राजाज्ञा की अवहेलना करने वालों को तेज खार में डाल दिया जाता, तथा जितनी देर गाय के दुहने में लगती है, उतनी देर में उनका कंकाल-मात्र शेष रह जाता। ईरान के शाहंशाहों (साहाणुसाहि) द्वारा अपने अधीन रहने वाले शाहों के पास स्वनाममुद्रित कटार भेजने का उल्लेख मिलता है, जिसका अर्थ है कि उनका सिर काट लिया जाये।
राजा बड़े शक्को होते थे, और किसी पर जरा-सा भी शक हो जाने पर उसके प्राण लेकर ही छोड़ते थे। नन्द राजाओं को दास समझकर जो लोग उनके प्रति आदर न जताते उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता। एक बार नन्द राजा का मन्त्री कल्पक अपने पुत्र के विवाह का उत्सव मना रहा था। नन्द का भूतपूर्व मंत्री कल्पक से द्वेष रखता था। उसने राजा के पास दासी भेजकर झूठमूठ कहला दिया कि कल्पक अपने पुत्र को राजगद्दी पर बैठाने की तैयारी कर रहा है। इतना सुनना था कि नन्द ने कल्पक को बुलाकर, कुटुम्ब-परिवार सहित उसे कुएं में डलवा दिया। नौवें नन्द के मन्त्री कल्पकवंशोत्पन्न शकटार के विषय में भी यही हुआ। अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर जब उसने राजा के नौकरों-चाकरों को एकत्रित किया तो शकटार के प्रतिस्पर्धी वररुचि ने राजा के पास जाकर चुगली लगायी कि शकटार राजा का वध कर अपने पुत्र का राजतिलक कर रहा है। यह सुनकर नन्द को बहुत क्रोध आया । सारे परिवार पर संकट आया
. . अर्थशास्त्र ४.८.८३.३३.३४ और याज्ञवल्क्यस्मृति, २, २३,२७० में भी इसका उल्लेख है।
२. राजप्रश्नीय १८४, १० ३२२ । अंगुत्तरनिकाय २,४, पृ. १३६-४० में भी चार परिषदों का उल्लेख है।
३. खारांतके पक्खित्ता गोदोहमित्तेणं कालेणं अष्टिसंकलिया सेसा, आचारांगचूर्णी ७, पृ० ३८।.
४. निशीथचूर्णी १०,२८६० चूर्णी पृ० ५६ । ५. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १८२ ।