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- जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
चोरी और व्यभिचार की भांति हत्या भी महान् अपराध गिना जाता था । हत्या करनेवाले अर्थदण्ड ( जुर्माना ) और मृत्युदण्ड के भागी होते थे ।' मथुरा के नंदिषेण नामक राजकुमार की कथा पहले आ चुकी है। राजा के नाई के साथ मिलकर उसने राजा को हत्या का षड्यंत्र रचा, लेकिन जब षड्यंत्र का भेद खुल गया तो राजकुमार को गर्म लोहे के सिंहासन पर बैठाकर, तप्त लोहे के कलशों में भरे हुए खारे तेल से तपते हुए लोहे का हार और मुकुट उसे पहना दिये गये, और इस प्रकार नंदिषेण मृत्युदण्ड का भागो हुआ । हत्या करने वाली स्त्रियों को भी दण्ड दिया जाता था । राजा पुष्पनंदि को रानी देवदत्ता अपनी से 'बहुत ईर्ष्या करती थी । उसने अपनी सास को तपे हुए लोहे के डण्डे से दागकर मरवा डाला । पता लगने पर राजा ने देवदत्ता को पकड़वाकर, उसके हाथों को पीठ पीछे बंधवा, और उसके नाक-कान कटवा उसे शूली पर चढ़वा दिया | 3
सास
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राजा का एकच्छत्र राज्य
प्राचीन भारत में राजा का एकच्छत्र राज्य था । विविध प्रकार से वे प्रजा को कष्ट पहुँचाते । राजाज्ञा का उल्लंघन करने वाले उसके दारुण कोप से नहीं बच पाते । परिषदों का अपमान करने वालों को भिन्न-भिन्न दण्ड-व्यवस्था का विधान किया गया है। यदि कोई ऋषि परिषद् का अपमान करे तो उसे केवल अमनोज्ञ वचन कहकर छोड़ देना चाहिए, यदि कोई ब्राह्मण परिषद् का अपमान करे तो उसके मस्तक पर कुण्डी या कुत्ते का चिह्न बनाकर निर्वासित कर
यहाँ कहा गया है कि यदि कोई शूद्र किसी ब्राह्मण को अपशब्द कहे या उसके साथ मारपीट करे तो उसके उसी श्रङ्ग को छेद देना चाहिए, तथा ८. १२ श्रादि तथा कौटिल्य अर्थशास्त्र ४.८.८३.३२ ( सर्वापराधेष्वपीडनीयो ब्राह्मणः ) ।
१. पुरुषवध के लिए तलवार उठाने पर ८० हजार जुर्माना किया जाता, प्रहार करने पर मृत्यु न हो तो भिन्न-भिन्न देशों की प्रथा के अनुसार जुर्माना देना पड़ता, तथा यदि मृत्यु हो जाय तो भी हत्यारे को ८० हजार दण्ड भरना पड़ता, बृहत्कल्पभाष्य ४, ५१०४ ।
२. विपाकसूत्र ६, पृ० ३८-३६ । वही, पृ० ४६, ५५ ।