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तीसरा अध्याय : अपराध और दण्ड ८२ चोरों की भांति दुराचारियों को भी शिरोमुंडन, तर्जन, ताडन, लिंगच्छेदन, निर्वासन और मृत्यु आदि दण्ड दिये जाते थे।' वाणियग्राम-वासी उज्झित नाम का कोई युवक कामध्वजा वेश्या के घर नित्य नियम से जाया करता था। राजा भी वेश्या से प्रेम करता था। एक दिन उज्झित कामध्वजा के घर पकड़ा गया। राजकर्मचारियों ने उसकी खूब मरम्मत की। उसके दोनों हाथ उसकी पीठ पीछे बांध, नाक-कान काट, उसके शरीर को तेल से सिंचित कर, मैले-कुचैले वस्त्र पहना, कनेर के फूलों की माला गले में डाल, उसे अपने ही शरीर का मांस खिलाते हुए, खोखरे बांस से ताड़ना करते हुए, उसे वध्यस्थान को ले गये । सगड और सुदर्शना वेश्या को भी कठोर दण्ड का भागी होना पड़ा । सुदर्शना राजा के मंत्री को रखेल थी, और सगड छिपकर उसके घर जाया करता था। पकड़े जाने पर राजा ने दोनों को मृत्युदण्ड का हुकुम सुनाया। सगड़ ने आग से तपती हुई एक स्त्री की मूर्ति का आलिंगन करते हुए प्राणों का त्याग किया। पोदनपुर के कमठ का अपने भ्राता की पत्नी के साथ अनुचित सम्बन्ध हो जाने के कारण उसे मिट्टी के कसोरों की माला पहना, गधे पर बैठा, सारे नगर में घुमाकर निर्वासित कर दिया गया ।' कौशांबी के राजा उदयन के पुरोहित बृहस्पतिदत्त, तथा श्रीनिलयनगर के वणिक को दण्ड दिये जाने का उल्लेख पहले किया जा चुका है। हाँ, ब्राह्मणों को दण्ड देत समय सोच-विचार से काम लिया जाता था। व्यवहारभाष्य में एक ब्राह्मण की कथा आती है जिसे अपनी पतोहू या किसी चांडाली के साथ व्यभिचार करने पर, केवल वेदों का स्पर्श कराकर छोड़ दिया गया ।
१. सूत्रकृतांग ४.१.२२; निशीथचूर्णी १५, ५०६० की चूर्णी; मनुस्मृति ८.३७४; याज्ञवल्क्यस्मृति ३.५. २३२ में प्राचार्यपत्नी और अपनी कन्या के साथ विषयभोग करने पर लिङ्गच्छेद का विधान है।
२. विपाकसूत्र २, पृ० १३, देखिए कणवीरजातक (३१८); सुलसा जातक (४१६, पृ० ६५); तथा याज्ञवल्क्यस्मृति (३.५. २३२ श्रादि ); मनुस्मृति (८.३७२ आदि)।
३. विपाकसूत्र ४, पृ० ३१; १०, पृ० ५६ ।
४. उत्तराध्ययनटीका २३, पृ० २८५ आदि; देखिए गहपतिजातक (१६६)। स्त्रियों को भी इस प्रकार का दण्ड दिया जाता था, मनुस्मृति ८.३७० ।
५. पीठिका, गाथा १७, पृ० १० । तुलना कीजिए गौतमधर्मसूत्र १२.१;