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________________ ८२ . जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज लिए जाते, रक्त से लिप्त मांस को उनके मुंह में डाला जाता और फिर खण्ड-पटह से अपराधों की घोषणा की जाती। ___ इसके सिवाय, लोहे या लकड़ी में अपराधियों के हाथ-पैर बांध दिये जाते ( अंडुगबद्ध), खोड़ में पैर बांधकर ताला लगा दिया जाता ( हडिबद्धग), हाथ, पैर, जीभ, सिर, गले की घंटी अथवा उदर को छिन्न कर दिया जाता, कलेजा, आंख, दांत और अण्डकोश आदि मर्म स्थानों को खींचकर निकाल लिया जाता, शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये जाते, रस्सी में बांधकर गड्ढे में और हाथ बाँधकर वृक्ष की शाखा में लटका देते, हाथी के पैर के नीचे डालकर रोंदवा देते, चंदन की भांति पत्थर पर रगड़ते, दही की भांति मथते, कपड़े की भांति पछाड़ते, गन्ने की भांति पेरते, मस्तक को भेद देते, खार में फेंक देते, खाल उधेड़ देते, लिंग को मरोड़ देते, आग में जला देते, कीचड़ में धंसा देते, गर्म शलाका शरीर में घुसेड़ देते, क्षार, कटु और तिक्त पदार्थ जबर्दस्ती पिलाते, छाती पर पत्थर रखकर तोड़ते, लोहे के डंडों से वक्षस्थल, उदर और गुह्य अङ्गों का छेदन करते, लोहे की मुग्दर से कूटते, चांडालों के मुहल्ले में रख देते, देश से निर्वासित कर देते, लोहे के पिंजरे में बन्द कर देते, भूमिगृह, अंधकूप या जेल में डाल देते, और शूली पर चढ़ाकर मार डालते । स्त्रियाँ भी दण्ड की भागी होती थीं, यद्यपि गर्भवती स्त्रियों को क्षमा कर दिया जाता। किसी पुरोहित ने अपनी गर्भवती कन्या को घर से निकाल दिया, वह किसो गंधी के यहाँ नौकरी करने लगी। मौका पाकर उसने अपने मालिक के बहुमूल्य बर्तन और कपड़े चुरा लिये । गिरफ्तार कर लिये जाने पर, प्रसव के बाद, राजा ने उसे मृत्युदण्ड की आज्ञा दी। १. विपाकसूत्र २, १३, ३, २१; प्रश्नव्याकरण १२, पृ० ५०-अ-५४ । तथा देखिये अंगुत्तरनिकाय २, ४, पृ० १२८ । २. प्रश्नव्याकरण १२, पृ० ५० -५१, ५४-५४ अ; विपाकसूत्र २, पृ० १३; ३, पृ० २१; औपपातिक सूत्र ३८, पृ० १६२ आदि; उत्तराध्ययनटीका पृ० १६० अ; तथा देखिए अर्थशास्त्र ४.८-१३, ८३-८८, २८; मिलिन्दप्रश्न, पृ० १६७ । ३. गच्छाचारवृत्ति ३६ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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