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________________ ८०] श्री अमितगति श्रावकाचार ताकू आचार्य कहैं हैंतदयुक्तं यतो मुक्ता, तोयादीनां विलोक्यते । एका पोद्गलिकी जाति, भिन्नताऽतः कुतस्तनी ॥२१॥ जो तूने कहा कि मुक्ताफलादिक अर जलादिक इनिकी भिन्न जाति हैं सो अयुक्त है, जातें मुक्ताफल अर जल इत्यादिकनिकी एक पुद्गलसम्बधिनी जाति देखिए है इस कारणनै तिनतै भिन्नता काहेकी । ___भावार्थ-मुक्ताफल जलादिक इत्यादिकनिकी एक जाति है, तातें पूदगलतें पुदगलका ही पर्याय भया किछ जीवतौ न उपज्यो तातें तेरा दृष्टांत विषम है ऐसा जानना ॥२१॥ " यतः पिष्टोदकादिभ्यो, मदशक्तिरचेतना । संभूताऽचेतनेभ्योऽतो, दृष्टांतस्ते न चेतने ॥२२॥ अर्थ-जातें अचेतन चून गुड आदितै अचेतन ही मदशक्ति प्रगट होय है तातें तेरा यह दृष्टांत चेतनकै विर्षे नहीं लगि सकै है ।।२२॥ न शरीरात्मनौरक्यं, वक्तव्यं तत्ववेदिभिः । शरीरे तदवस्थेऽपि, जीवस्यानुपलब्धितः ॥२३॥ अर्थ-तत्वकौं जाननेवारे पुरुषनिकरि शरीर आत्माकू एक कहना योग्य नाहीं, जातै शरीरकौं तहां अवस्थित होतें भी बाकी अनुपलब्धि है अप्राप्ति है। भावार्थ-जीव परलोककू जाय है तब शरीर इहां रहि जाय है अर जीव न देखिए है तातै शरीर जीव एक नाहीं ऐसा निश्चय करना ॥२३॥ आगै विज्ञानाद्वतका निषेध करै हैज्ञानं विहाय नात्मास्ति, नेदं वचनमंचितम् । ज्ञानस्य क्षणिकत्वेन स्मरणानुपपत्तितः ॥२४॥ अर्थ-ज्ञान बिना और आत्मा नाहीं ऐसा कहना सत्यार्थ नाही, . जातै ज्ञानके क्षणिकपने करि स्मरणकी अनुपपत्ति है ।
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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