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________________ ७४ ] श्री अमितगति श्रावकाचार ताका वचनकू उदाहरण कहिए सो पक्ष सारिखेकू व्यतिरेक कहिये । बहुरि हेतुपूर्वक पक्षका नियम करि कहना निगमन है। इनका उदाहरण ऐसा है-यह पर्वत अग्निमान् है यह तो प्रतिज्ञा है; जातें यह धूमवान हैं यह हेतु है; बहुरि जो धूमवान नाहीं सो अग्निमान नाहीं। जैसे जलका निवास, यह व्यतिरेक दृष्टांत है; ऐसा वचन यह उदाहरण है । बहुरि यहु पर्वत भी वैसा ही धूमवान है यह उपनय है; बहुरि तातें यह अग्निमान है यह निगमन है। ऐसें पांच प्रयोगका परार्थानुमान है सो अव्युत्पन्न के अर्थि है अर व्युत्पन्न के अथि प्रतिज्ञा अर हेतु ऐसे दोय अवयवस्वरूप ही हैं । बहुरि आप्त जो सर्वज्ञ ताके वचननै वस्तु का निश्चय करना सो आगम प्रमाण है। ऐसे प्रमाणकी संख्या कही। बहुरि प्रमाणका विषय सामान्य विशेष स्वरूप पदार्थ है । बहुरि वीतराग का ग्रहण त्याग बुद्धि वा अपने विषयमें अज्ञानका नाश यहु कथंचित् अभिन्न कथंचित् भिन्न प्रमाण फल है। ऐसे प्रमाणका संक्षेप स्वरूप कह्या, विशेष आक्षेप समाधान खण्डन मंडनादि प्रमाण निर्णय परीक्षामुखादि ग्रन्थनितें जानना, यहां हेतु आदि आवैगे तिनकौं यथार्थ जान लेना। आगें चार्वाक मतवाले अपना पक्ष स्थापै हैं;केचिद्वदंति नास्त्यात्मा, परलोकगमोद्यतः। तस्याभावे विचारोऽयं, तत्वानां घटते कुतः॥१॥ विद्यते परलोकोऽपि, नाभावे परलोकिनः । अमावे परलोकस्य, धर्माधर्मक्रिया वृथा ॥२॥ इह लोक सुखं हित्वा, ये तपस्यंति दुर्षियः । हित्वा हस्तगतं प्रासं, ते लिहंति पदांगुलिम् ॥३॥ विहाय कलिला शंका, यथेष्टं चेष्टतां जनः। चेतनस्य हि नष्टस्य, विद्यते न पुनर्भवः ॥४॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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