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चतुर्थ परिच्छेद
चतुर्थ परिच्छेद
* अन्य मतिनके एकान्त पक्षका निराकरण करि जीवादिकका वर्णन हेतुवाद सहित करेंगे । तहां हेतुके स्वरूप जाननेकू प्रथम प्रमाणका वर्णन संक्षेप मात्र करिए है । तहां आप वा अपूर्व अर्थ कहिए अनिश्चित पदार्थ इनिका निश्चय स्वरूप जो सम्यक् ज्ञान सो प्रमाण है, सो प्रत्यक्ष परोक्षके भेदकर दोय प्रकार है । सामान्य विशेषनि सहित वस्तुका स्पष्ट जानना सो प्रत्यक्ष का लक्षण है, अर सामान्य विशेष सहित वस्तुकौं अस्पष्ट व्यवधान सहित जानना परोक्षका लक्षण है । तहां सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष अर पारमार्थिक प्रत्यक्ष ऐसें प्रत्यक्ष दोय प्रकार है, तहां इन्द्रिय मनसैं उत्पन्न भए तीनसै छत्तीस भेदरूप मतिज्ञान सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है जातें इनमें दो प्रकार विशदता पाइए है, अर परमार्थ प्रत्यक्ष में अवधि, मनः पर्यय देश प्रत्यक्ष हैं जातें इनमें एकदेश विशदता पाइए है अर केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है जातैं सर्वकौं विशद जाने है । बहुरि परोक्ष प्रमाण के भेद पांच हैं - स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान, आगम । तहां पूर्वे अनुभव में आया वस्तुका स्मरण हो आदि भावना सो स्मृति है; अर दोऊनि एकपना अर सदृशपना आदि कोऊ रूपज्ञान होना सो प्रत्यभि ज्ञान है; बहुरि साध्य साधन की व्याप्ति जो अविनाभाव ताकौं जानैं सो तर्क है; बहुरि साधन तें साध्य पदार्थ का ज्ञान होना सो अनुमान है, ताके भेद स्वार्थानुमान, परार्थानुमान, तहां साधनतैं साध्यकौं आप ही निश्चयकरि जानै सो स्वार्थानुमान है । बहुरि परके उपदेशतें निश्चयकरि जानै सो परार्थानुमान है । ताके पांच अवयव हैं; प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमन, तहां साध्य अर साधन का आश्रय दोऊकौं पक्ष कहिये ऐसें पक्षके वचनकौं प्रतिज्ञा कहिए है तहां साध्यका स्वरूप शक्य अभिप्रेत अप्रसिद्ध ऐसें तोनरूप है । अर साध्य का आश्रय प्रत्यक्षादिक करि प्रसिद्ध होय है । बहुरि साध्यतें अविनाभाव प्राप्तिजाका होय ऐसा साधनका स्वरूप है ताका वचनकौं हेतु कहिए । बहुरि पक्ष सरीखा तथा विलक्षण अन्य ठिकाणा होय ताकू दृष्टांत कहिए