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________________ श्री अमितगति श्रावकाचार ७० ] नाकौं कर है उद्योग करै है सो यहु सम्यग्दृष्टि प्रभावना करनेवाला कह्या है । सर्व जीव मानें कि जिनमत धन्य है तामे ऐसे तपश्चरणादि पाइए है, ऐसे तपश्चरणादिक करि जिनमत का उद्योत करना तथा निश्चयतें आत्माकू रत्नत्रय आभूषित करमा सो प्रभावना अङ्ग जानना ||८०|| गुणैरीमभि: शुभदृष्टिकं ठिकां, दधाति बद्धां हृदि योऽष्टभिः सदा । करोति वश्याः सकलाः स संपदो, बधूरिवेष्टाः सुभगो वशंवदः ॥८१॥ अर्थ - जो पुरुष इन निःशंकितादि अष्टगुण कहिए सूत्रनि करि बंधी सम्यग्दृष्टिरूप मालाकौं हृदयविषै सदा धारै है सो समस्त सम्पदानकौं वश करें है। जैसे भले वचननिका बोलनेवाला सुन्दर पुरुष वांछित वधूदिन वश करै तैसें । भावार्थ- जैसे माला पहरे सुन्दर पुरुष भले वचननिका बोलनेवाला वश करें है तैसें निःशंकितादि सूत्रनि करि बन्धी सम्यग्दृष्टिरूप माला पहननेवाला जीव इन्द्रादि सम्पदाकों वशि करें हैं ऐसा स्त्री जानना ॥ ८१ ॥ सुदर्शनं यस्य स ना सुभाजनः, सुदर्शनं यस्य स सिद्धिभाजनः । सुदर्शनं यस्य स धीविभूषितः, सुदर्शनं यस्य स शी भूषितः ॥८२॥ अर्थ-जाकै सम्यग्दर्शन है सो पुरुष भला पात्र है, अर जाके सम्यदर्शन है सो सिद्धिका भजने वाला है, अर जाके सम्यग्दर्शन है सो शीलकरि भूषित है ॥८२॥ नो जायते पावने ज्ञानवृत्त े, सम्यक्त्वेन प्राणिनो वर्जितस्य । शर्माधारे कोषराज्ये न दृष्टे, नूनं क्वापि न्यायहीनस्य राशः ॥८३॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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