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________________ द्वितीय परिच्छेद [ ३३ आदिमं त्रितयं हित्वा, गुणेषु सकलेष्वपि । सम्यक्त्वं क्षायिकं ज्ञेयं, मोक्षलक्ष्मीसमर्पकम् ॥५६॥ अर्थ-अदिके मिथ्यात्व सासादन मिश्र ए तीन गुणस्थाननिकों छोड़करि सर्व ही गुणस्थाननिविर्षे मोक्षलक्ष्मीका देनेवाला क्षायिक सम्यक्त्व जानना ॥५६॥ तुर्यादारभ्य विज्ञेयमुपशांतांतमादिमम् । चतुर्थे पंचमे षष्ठे, सप्तमे वेदकं पुनः ॥५७॥ अर्थ-चौथे गुणस्थानतें लगाय उपशांतकषाय पर्यंत आदिका उपशमसम्यक्त्व जानना । बहुरि चौथे पांचवें छठे सातवें गुणस्थान विष वेदकसम्यक्त्व जानना ॥२७॥ साध्यसाधनभेदेन, द्विधा सम्यक्त्वमिष्यते । कथ्यते क्षायिकं साध्यं, साधनं, द्वितयं परम् ॥५८॥ प्रथमायां त्रयं पृथ्व्यामन्यासु क्षायिकं विना । सम्यक्त्वमुच्यते सद्भिर्मवभ्रमणसूदनम् ॥५६॥ अर्थ-साध्य साधनके भेद करि दोय प्रकार सम्यक्त्व कहिये है, क्षायिक साधने योग्य है अर उपशम वेदक ये दोय साधन हैं। प्रथम पृथ्वीविर्षे संसारभ्रमणके नाशक तीनों सम्यक्त्व हैं अर छह पृथ्वीनविर्षे क्षायिक विना दोय सम्यक्त्व पंडितनि करि कहिए हैं ॥५६॥ तिर्यक मानवदेवानां, सम्यक्त्वं त्रितयं मतम् । न नीलिपीतिरश्चीनां, क्षायिक विद्यते परम् ॥६०॥ अर्थ-तियंच मनुष्य देवनिक तीनों ही सम्यक्त्व कहे हैं, अर देवांगना तिर्यंचनी निकै एक क्षायिक सम्यक्त्व नाहीं है ॥६०॥ क्षायोपशमिकस्योक्ताः, षट्पष्टिजलराशयः । प्रांतमौ हूत्तिको ज्ञेया, प्रथमस्य परा स्थितिः ॥६१॥ अर्थ-क्षयोपशम सम्यक्स्व की उत्कृष्ट स्थिति छ्यासठि सागरकी कहीं, अर उपशम सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्तकी जाननी ॥६१॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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