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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ---या प्रकार विनयवानकै अर विनयरहितकै लाभ अलाभ जानि करि भो शिष्य ! मन वचन कायतें अविनयकौं त्यागकै विनयसहित होना योग्य है ॥६०॥
ऐसें विनयका वर्णन किया। आगे-वैयावृत्यका वर्णन करै हैं:कृतांतरिव दुर्वारः, पीड़ितानां परीषहैः ।
वैयावृत्यं विधातव्यां, मुमुक्षूणां विमुक्तये ॥६१॥
अर्थ-काल समान दुःखतें निवारण जिनका ऐसे जे रोगादि परिषह तिनकरि पीड़ित जे मोक्षके अभिलाषी आचार्य आदि तिनका वैयावृत्य कहिए टहल चाकरी करना योग्य है, काहेकै अथि-मुक्तिके अर्थि ।
__ भावार्थ - लौकिक कार्यकी वांछा रहित मुक्तिहीके अथि वैयावृत्य करना ॥६१॥
दुभिक्षे मरके रोगे, चौरराजाद्य पद ते । कर्मक्षयाय कर्तव्या, व्यावृतिर्वतवत्तिनाम् ॥६२॥
अर्थ-दुभिक्ष विर्षे अर मरी विषं अर रोगविर्षे अर चौर राजादिकतें उपसर्ग विर्षे करनिकै नाशके अथि व्रतीनकी टहल चाकरी करनी यौग्य है ॥६२॥
प्राचार्गेऽध्यापके वृद्ध, गक्षरक्षे प्रवर्तके । शैक्ष्ये तपोधने संघे, गणे ग्लाने दशस्वपि ॥६३॥ प्रासुकैरोषधैर्योग्ौर्मनसा वपुषा गिरा। विधेया व्यावृतिः, सद्भिर्भवभ्रांतिजिहासुभिः ॥६४॥
अर्थ-जाते व्रतनिका आचरण करिए सो आचार्य कहिए, बहुरि जाके निकट शास्त्राध्ययन करिए सो उपाध्याय कहिए, वहुत कालके दीक्षित होय सो वृद्ध कहिए, अर गणकी रक्षा करै सो गणरक्ष कहिए अर संघकौं प्रवर्त्ता सो प्रवर्तक कहिए, अर शास्त्रके सीखने में तत्पर होय सो शैक्ष्य कहिए अर महोपवासादिके करनेवाले तपस्वी कहिए, अर च्यार मुनिनका समूहकों संघ कहिए, अर बड़े मुनिकी संतानकौं गण कहिए, अर