SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०६ ] श्री अमितगति श्रावकाचार भुक्तिद्वयपरित्यागे, विविधो गदितोऽधमः । उपवासस्त्रिधाप्येषः, शक्तित्रिवयसूचकः ॥१२४॥ अर्थ-तहां च्यार प्रकार आहारका त्याग करिए सो चतुर्विध नामा उत्तम उपवास है, बहुरि पानी सहित है सो त्रिविध नामा मध्यम उपवास कह्या है ॥१२३।। बहुरि दोय वेला प्रकार भोजनका त्याग होत सन्ते त्रिविध नामा अधम उपवास है, यह उत्तम, मध्यम, जघन्य तीनों प्रकारहीका उपवास उत्तम, मध्यम, जघन्य तीनौं शक्तिका सूचक है, जैसी जा पुरुषमैं शक्ति होय तैसा ही उपवास धारै ॥१२४।। भावार्थ--धारणे पारणे एकबार भोजन करै अर च्यार प्रकार आहारका त्याग करै सो चतुर्विध नामा उत्तम उपवास कहिए है, अर धारणे पारणे एक मुक्ति करै अर उपवासमैं जल लेय सो मध्यम त्रिविध नामा उपवास है, अर धारणे पारणे अनेकबार खाय अर उपवासविर्षे पानी भी लेय सो अधम त्रिविधनामा उपवास कहिए, यामैं एकदिनमैं दोय भोजनकी वेला होय है तिन दोऊ वेलामें भोजन त्याग्या तातें दोऊ भोजनका त्याग किया, ऐसा जानना ॥१२३-१२४।। आगें उपवास करने का विधान कहै हैं:प्रहर द्वितीये भुक्त्वा समेत्याचार्यसन्निधिम् । वंदित्वा भक्तितः कृत्वा, कायोत्सर्ग यथाक्रमम् ॥१२५।। पंचांगप्रति कृत्वा, गृहीत्वा सूरिवाक्यतः । उपवासं पुनः कृत्वा, कायोत्सर्ग विधानतः ॥१२६॥ प्राचार्य स्तवतः स्तुत्त्वा, वंदित्वा गणनायकम् । दिनद्वयं ततो नेयं स्वाध्यायासक्तचेतसा ॥१२७।। विधाय साक्षिणं सूरि गृहसाणः पटीयसा । संपद्यतेतरामेष व्यवहार इव स्थिरः ॥१२८॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy