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श्री अमितगति श्रावकाचार
वचननि करि है सो यह निश्चय करि पावनके उठावने धरने करि आकाशके अन्तकौं जाय है।
भावार्थ-तिन देवनिका सुख वचनतें न कह्या जाय है, ऐसा जानना ॥११॥
नवयौवनसम्पन्ना दिव्यभूषणभूषिताः । ते वरेण्याद्यसंस्थाना जायन्तेऽन्तर्मुहूर्ततः ॥११६॥
मर्थ- नवयौवनसहित अर दिव्य आभूषणनि करि भूषित अर श्रेष्ठ आदिका समचतुरस्त्र है संस्थान जिनका ऐसे अन्तर्मुहूर्त में उपजे हैं ॥११६॥
तेषां खेदमलस्वेदजरारोगादिवंजिताः ।
जायते भास्कराकाराः स्फाटिका इव विग्रहाः ॥११७॥
अर्थ-तिन देवनिके खेद मल पसेव जरा रोग इत्यादि करि ददीप्यमान हैं आकार जिनके मानौं स्फाटिकमणिके है ऐसे शरीर उपज हैं ॥११७॥
राजत हृदये तेषां हारयष्टिविनिर्मला । निसर्गसम्भवा मूर्ती सम्यग्दृष्टिरिव स्थिता ॥११७॥
अर्थ-तिन देवनिके हृदयविर्षे विशेष निर्मल हारकी लडी सोहै है, मानौं स्वभावकरि उपजी मूर्तिवन्त सम्यग्दृष्टी तिष्ठी है ॥११८॥
मुकुटो मस्तके तेषामुद्योतित दिगन्तरः । निषधानाभिवादित्यस्तमोध्वंसीय भासते ॥११॥
अर्थ-जैसे निषधाचलनके ऊपरि अन्धकारका नाश करनेवाला सूर्य सोहै हैं तैसें तिन देवनिके मस्तकविर्षे उद्योतरूप किया है दिशानका अन्तर जानें ऐसा मुकुट सोहै है ॥११॥