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________________ दशम परिच्छेद [२३३ करि ग्रहण नाहीं करै है कैसा है सो पड़े द्रव्यकौं देखकर भी अदत्तकी है बुद्धि जाकै। पड़ी वस्तुकौं भी देखकर अदत्त मानकर ग्रहण न करै है ॥७॥ बहुरि थिर हैं आत्मा जाका ऐसा जो तिर्यंचणी मनुष्यणी देवांगना अचेतन पुतली आदि भेदरूप ऐसी च्यार प्रकार स्त्रीकौं भयानक मारी रोगकी ज्यों सर्वथा त्याग है ॥८॥ बहुरि जो धीर नाना प्रकार चेतनतें उपज्या चेतन परिग्रह स्त्री पूत्रादिक अर अचेतन परिग्रह धन धान्यादिक ताहि त्याग करि फेरि वमन किये अन्नको ज्यौं ग्रहण नाहीं करै है ॥६॥ वहुरि प्रासुक मार्ग करि जीवनिकौं बचावता गमन करै है कैसा है सो तीन प्रकार मन, वचन, कायके आलंवनतें है शुद्धि जाकै, बहुरि दयाका आधार, युग प्रमाण आंतरै है दृष्टि जाकी। च्यार हाथ तांई क्षेत्र देखकरि चाल है ऐसा है ॥१०॥ बहुरि जो हृदयकौं भूषित करती अतापाकौं हरनेवाली अर सूत्रकरि भले प्रकार बन्धी ऐसी मोतीनकी माला समान जो वानी ताहि बोल है। .: मोतीकी माला हृदयकौं शोभित करै है सो यह वाणी भी हृदय जो चित्त ताकौं शोभित करै है अर माला आताप हरै है अर माला सूत्र कहिये डोरा तासू बन्धी है अर वाणी जिनभाषित सूत्रसू बंधी है ऐसी समान उपमा जाननी ॥११॥ बहुरि जो छयालीस दोष रहित अर नवकोटी शुद्ध आहार ताहि ग्रहण कर है, भले बुरे आहार में है समान बुद्धि जाकी अर जीती है इन्द्रिय जानें ॥१२॥ बहुरि जो विकृति कहिये हस्त धोवनादि कार्यके अर्थ भस्म अर आदि शब्द करि पीछी कमंडलु सांथरा इत्यादि वस्तुकौं यत्नसहित ग्रहण करै है, जीवनके समूहके पालनेमैं आसक्त है चित्त जाका अर दयाके अंग प्रति लिपट रह्या है ॥१३॥ . बहुरि जो जीवरहित अर विरोध रहित बहुरि दूर गुप्त अर संकट रहित विस्तीर्ण ऐसे क्षेत्र विर्षे मल मूत्र कफ आदि शरीरके मलकौं
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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