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अष्टम परिच्छेद
जानना ॥७२॥
इच्छुक हैं तिन करि प्रतिक्रमणादिक जैसी शक्ति होय तैसें करना योग्य है ॥७१॥
इच्छाकारं समाचारं संयमासंयमस्थितिः । विशुद्धवृत्तिभिः साद्ध, विदधाति प्रियंवदाः ॥७२॥
अर्थ - संयमासंयम विषै है स्थिति जाकी, भावार्थ - एक ही समय सहिंसाका त्यागी अर स्थावर हिंसाका त्यागी ऐसा देशव्रती, प्रिय वचनका वोलनेवाला, सो निर्मल है प्रवृत्ति जिनकी ऐसे जे आचार्यादिक तिनके साथ इच्छाकार नामा समाचारकौं कर है ।
भावार्थ - श्रावक है सो आचार्यदिकके उपदेश में इच्छा करें है, कहै हैं कि हे भगवन् ! आप कह्या सो मैं इच्छू हूँ । ऐसा
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वेराग्यस्य परां भूमि, संयमस्य निकेतनम् । उत्कृष्ट: कास्यत्येष, मुंडनं तुंडमुंडयोः ॥७३॥
प्रथं - उत्कृष्ट श्रावक है सो वैराग्यकी परम भूमिका अर संयमका ठिकाना ऐसा, तुरंड कहिये मुख डाढ़ी मूंछका अर मुंड कहिए मूंडके वालका मु ंडन जो मूंडना ताहि करावे ही है ।
भावार्थ - ग्यारह प्रतिमाका धारी उत्कृष्ट श्रावक डांढ़ी मूछके बाल कतरा हैं, ऐसा जानना ॥७३॥
केवलं वा वस्त्रं वा, कौपीनं स्वीकरोत्यसौ । निदगपरायणः ॥७४॥
एकस्थानान्नपानीयो,
अर्थ - यहु उत्कृष्ट श्रावक है सो केवल कौपीन वा वस्त्रसहित कौपीनको अंगीकार करै है, कैसा है यहु एक स्थान विषै ही है अन्नपानीका लेना जाकै अर आपको निंदा अर गर्दा विषै तत्पर है ॥ ७४ ॥
स धर्मलाभशब्देन, प्रतिवेश्म सुधोपमम् ।
सपात्रो याचते भिक्षां, जरामरणसूवनीम् ॥ ७५ ॥