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________________ १६४ ] श्री अमितगति श्रावकाचार अर्थ - पंडितनिने स्वाध्याय विषै बारह कायोत्सर्ग कहे हैं, अर वंदना मैं छह कहे हैं अर प्रतिक्रमण विषै आठ कहे हैं अर योगभक्ति विषै ते दोय कायोत्सर्ग कहे हैं । ऐसें सर्व अठ्ठाईस कायोत्सर्ग करनेका अवसर जानना ॥६७॥ आगे कौन कायोत्सर्ग कितने उच्छ् वास ताईं करना ताका प्रमाण कहैं हैं अष्टोत्तरशतोच्छ्वासः, कायोत्सर्गः प्रतिक्रमे । सांध्ये प्राभातिके वार्द्ध मन्यस्नत्सप्तविंशतिः ॥ ६८ ॥ अर्थ -- एकसौ आठ उछ्वासमात्र कायोत्सर्ग संध्या सम्बन्धी प्रतिक्रमण मैं कह्या है, अर प्रभात सम्वन्धी प्रतिक्रमण में अर्द्ध कहिए चौवन उच्छ् वास मात्र कायोत्सर्ग कह्या है, बहुरि और कायोत्सग सत्ताईस उछ् वास मात्र कह्या है ॥ ६८ ॥ सप्तविंशतिरुच्छ् वासाः, संसारोन्मू नक्षमे । संति पंचनमस्कारे, नवधा चितिते सति ॥ ६६ ॥ ॥ अर्थ संसार के नाश करने मैं समर्थ जो पंचनमस्कार मंत्र ताका नव प्रकार चितवन करे संते सत्ताईस उच्छ् वास होय है । भावार्थ - एक णमोकार मंत्र का जाप तीन उच्छवास में करें ऐसे नव णमोकार जाप मैं सत्ताईस उच्छ् वास जानना ॥ ६६ ॥ प्रतिक्रमद्वयं प्राज्ञः, स्वाध्यायानां चतुष्टयम् । त्रितयं वन्दना योगभक्तिद्वितयमिष्यते ॥७०॥ अर्थ - प्रतिक्रमण दोय, स्वाध्याय च्यार, वन्दना तीन, योगभक्ति दोय पंडितनि करि कहिए हैं ||७० || उत्कृष्ट श्रावकेणैते विधातव्याः प्रयत्नतः । अन्यैरेते यथाशक्ति संसारांते यियासुभिः ॥ ७१ ॥ अर्थ - जे प्रतिक्रमणादि पूर्वे कहे ते उत्कृष्ट श्रावक करि भले प्रकार जन्नतें करना योग्य है, बहुरि और जे संसार के पार जानें के
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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