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अष्टम परिच्छेद
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अर्थ - एक मस्तकही के नमावने विषै एकांग नमस्कार कहिए अर दोऊ हाथनके नमावने मैं द्वयंग कहिए दोय अंगनि करि नमस्कार कहिए, अर मस्तक अर दोय हाथके नमावन मैं त्र्यंग कहिए तीन अंग करि नमस्कार का है ||६३ || अर दोय हाथ अर दोय घुटने इन च्यारौं नमन मैं च्यार अंगनिकरि नमस्कार कह्या है, अर दोय हाथ अर एक मस्तक अर दोय घू ंटे इन पांचनकौं नमाये संते पंचांग नमस्कार है । ऐसा जानना ||६४||
आगें आवर्त्त कका स्वरूप कहैं हैं
कथिता द्वादशावर्त्ता, वपुर्वचनचेतसाम् । स्तव सामायिकाद्यं तपरावर्त्तन लक्षणाः
॥६५॥
अर्थ - शरीर वचन चित्त इनका स्तवन अर सामायिकके आदि अंतमैं आवर्त्तन कहिए फेरना है लक्षण जिनका ऐसे बारह आवर्त्त
कहै हैं ।
भावार्थ – सामायिकादिकके आदि अंत मैं मन वचन कायके योग हाथ जोडिकै तीन बार भक्ति सहित पलटना तब एक बार मस्तक नमावना, ऐसें च्यार बार मस्तक नमावने मैं बारह आवर्त्त जानना ।। ६५ ।
आगें कायोत्सर्गकी संख्या कहैं हैं
भ्रष्टविंशति संख्यानाः, कायोत्सर्गा मता जिनैः । अहोरात्रगताः सर्वे, षडावश्यककारिणाम् ॥६६॥
अर्थ - छह आवश्यक करनेवालेनके रात्रिदिन विषै सर्व अठ्ठाईस कायोत्सर्ग जिनदेवनैं कहे हैं ॥ ६६ ॥
आगें ते अठ्ठाईस कायोत्सर्ग कहां कहां होय हैं तिनका स्वरूप कहें हैं
स्वाध्याये द्वादश प्राज्ञवंदनायां षडीरिताः ।
अष्टौ प्रतिक्रमे योगभक्तौ तौ द्वावुदाहृतौ ॥६७॥