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________________ अष्टम परिच्छेद भक्तिको बुद्धिमानर्थी, बहुमानपरायणः । पठन श्रवणे योभ्यो, विनयोद्यमभूषितः ॥ २३॥ अर्थ - उचितपने का जाननेवाला होय । भावार्थ - यह कालादिक आवश्यकके उचित है ऐसा जाकै ज्ञान होय, बहुरि श्रद्धावान होय, अर आवश्यकके विधान करने मैं उद्यमो होय, अर कर्मकी निर्जराका वांछक होय, अर अपने वश किया है मन जानें ऐसा होय || २२|| बहुरि भक्तिमान् होय, बुद्धिमान होय, धर्मार्थी होय महाविनयमैं तत्पर होय, अर पढ़ने विषै सुनने विषै योग्य होय, अर विनय सहित आवश्यकके उद्यम करि भूषित होय ॥ २३ ॥ आगे फेर कहैं हैं ; होय है । [ १८३ गुणाय जायते शांते, जिनेन्द्रवचामृतम् । उपशांतज्वरे पूतं, भैषज्यमिव योजितम् ॥ २४ ॥ अर्थ - राग द्वेषकी मंदता शांतभया जो पुरुष ताविषै जिनेन्द्रका वचनामृत गुणके अर्थ होय है, जैसें उपशांत भया है ज्वर जाका ऐसा पुरुष विषै योजित किया औषध जैसे गुणकै अर्थ होय तैसें ॥२४॥ अयोग्यस्य वचो जैनं जायतेऽनर्थहेतवे । 1 यतस्ततः प्रयत्नेन मृग्यो योग्यो मनीषिभिः ॥ २५॥ अर्थ - जातैं अयोग्य पुरुषकै जिनेन्द्रका वचन अनर्थ निमित्त भावार्थ - मिथ्यादृष्टी जिन वचनका प्रयोजन न जानि उलटा rain पकड़ अपना बिगाड़ करें है तातें पंडितनि करि यत्नसहित योग्य पुरुष हेरना योग्य है ||२५|| , कषायाकुलिते व्यर्थं जायते जिनशासनम् । सन्निपातज्वरालीढे, दत्तं पथ्यमिवौषधम् ॥२६॥ अर्थ - कषाय करि आकुलित पुरुष विन जिनशासन निरर्थक
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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