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________________ १८४] श्री अमितगति श्रावकाचार होय है, जैसे संनिपात ज्वरसहित पुरुष वि दिया हितरूप औषध व्यर्थ होय तैस । भावार्थ-तीव्र कषायीकौं जिन वचन न रुचै है, ऐसा जानना ॥२६॥ . आगें आवश्यक करनेवाले चिह्न कहैं हैं : सत्कथा श्रवणानन्दो, निंदाश्रवणवर्जनम् । अलुब्धत्वमना लस्यं, निंद्यकर्मव्यपोहनम् ॥२७॥ कालकम व्युदासित्वमुपशांतत्वमार्दवम् । विज्ञ यानीति चिह्नानि, षडावश्यककारिणः ।,२८।। अर्थ-भली कथाके सुननें मैं तो आनंद, अर परिनिंदाके सुननेका त्याग, अर निर्लोभपना, अर आलस्य रहितपना, अर निंद्य कर्मका त्याग ॥२७॥ अर कालके उलंघनेका त्यागीपना, अर मान रहितपना, इत्यादिक चिह्न हैं ते षट् आवश्यकका करनेवाला जो पुरुष ताके जानने योग्य हैं ॥२८॥ आगें छह आवश्यकके नाम कहैं हैं :सामायिकं स्तवः प्राज वन्दना सप्रतिकमा। प्रत्याख्यानं तनूत्सर्गः, षोढावश्यकमीरितम् ॥२६॥ अर्थ-सामायिक १, स्तवन १, वन्दना १, प्रतिक्रमण १, प्रत्याख्यान १, कायोत्सर्ग १ ऐसे छह प्रकार आवश्यक पंडितनि करि कह्या है ॥२६॥ '... द्रव्यतः क्षेत्रतः सम्यक्कालतो भावतो बुधैः। .. नामतो न्यासतो ज्ञात्वा, प्रत्येकं तन्नियुज्यते ॥३०॥ - अर्थ-द्रव्यतै, क्षेत्रतें, कालतें, भावतें, नामतै, स्थापनातें भलेप्रकार जानकर सो आवश्यक एक एक प्रति लगाइए है। भावार्थ-सामायिकादि छहौं क्रियानमैं नामादिक छह छह लगाइए है, जैसे-द्रव्यसामायिक, क्षेत्रसामायिक, कालसामायिक, भावसामायिक नामसामायिक, स्थापनासामायिक । ऐसें ही स्तवादि विर्षे लगाय लेना ॥३०॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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