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________________ सप्तम परिच्छेद भावार्थ - पहला कर्म न होय तो गर्भमैं वृद्धि होना अर मुख पलटकें गर्भ तैं निकासना इत्यादि कार्य कैसे होय, तातें पूर्व कर्म अवश्य मानना ॥ ६० ॥ आगे वादीने कही थी कर्म अचेतन है सो कार्य कैसे करें ताका उत्तर करें है : विलोकमानाः स्वयमेव शक्ति विकारहेतु विषमद्यजाताम् । अचेतनं कर्म करोति कार्यं [ १७१ कथं वदंतोति कथं विदग्धाः ॥ ६१॥ अर्थ - विष वा मदिरा इन अचेतनतें उपजी जो विकारकी कारण शक्ति ताहि आपही देखते संते चतुर पुरुष हैं ते " अचेतन जो कर्म सो कार्यकौं कैसे करै है” ऐसी कैसे कहैं हैं । भावार्थ - मदिरादि अचेतन वस्तु है सो जैसें गहलपना उपजावै है तैसै कर्म भी अचेतन है सो अपना कार्य करें है, यामैं शंका कहां, प्रत्यक्ष अचेतनका कार्य देखिए है ॥ ६१ ॥ आगे फेर कहैं हैं : नानाप्रकारा भुवि वृक्षजातीविधूय पत्राणि पुरातनानि । अचेतनः किं न करोतिकालः प्रत्यग्रपुष्पप्रसवादिरम्याः ||६२ ॥ अर्थ – पृथ्वीविषै अचेतन जो काल है सो नानाप्रकार वृक्षकी जो जाति ताहि पुराने पत्रनकौं झड़ाय करि नवीन पुण्य पत्रादिकनि करि मनोहर कहा न करै है ? कर ही हैं । भावार्थ - जैसें अचेतनकाल है सो वृक्षनिके पहले पत्र भड़ाय नवीन पत्रादि करें है तैसें अचेतन कर्म भी अपना कार्य कर है, ऐसा जानना ||६२ ||
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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