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श्री अमितगति श्रावकाचार
आगें फेर कहैं है :
यनिःशेषं चेतनामुक्तमुक्त, कार्याकारि ध्वस्त कार्यावबोधैः । धर्माधर्माकाशकालादि सब,
द्रव्यं तेषां निष्फलत्वं प्रयाति ।६३।। अर्थ-जिन पुरुषनि करि चेतना रहित अचेतन द्रव्य है सो सर्वथा कार्यका करनेवाला नाहीं ऐसा कह्या तिनकै धर्म अधर्म आकाश काल आदि सर्व द्रव्य निष्फलपनेकौं प्राप्त होय हैं, कैसे हैं ते पुरुष नष्ट भया है कार्यका ज्ञान् जिनकै।
भावार्थ-जे सर्वथा अचेतनकौं कार्यका करनेवाला न मान हैं तिनकै धर्मादि द्रव्य अचेतन हैं ते निष्फल ठहरै तातें तिनके कार्य कारणपनेका ज्ञान नाहीं। यद्यपि धर्मादि द्रव्य प्रेरक कर्ता नाहीं तथापि निमित्त नैमित्तिक, भाव मांत्र परस्पर कार्यकारणपना है, सो स्याद्वादतें अविरोध सधै है ॥६३॥
__ आगै कोऊ कहै कि अमूर्त जीवकै मूर्तीक कर्म नहीं बन्धे है, ताका समाधान कर है
जीवैरमूत्त: सह कर्म मूत, संवध्यते नेति वचो न वाच्यम् । अनादिभूतं हि जिनेन्द्र चन्द्राः,
कर्मोगिसम्बन्ध मुदा हरंति ॥६४॥ अर्थ-अमूर्तीक जीवनि सहित मूर्तीक कर्म न बन्धे है ऐसा कहना योग्य नाहीं; जातें जिनेन्द्रचन्द्र हैं ते कर्म अर जीवनिका अनादितें सम्बन्ध कहैं हैं।
भावार्थ-जीव कर्मका अनादि सम्बन्ध है सो अनादि स्वभाव में तक नाहीं, ऐसा जानना ॥६४॥
आगें इस कथनको संकोचे हैं