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सप्तम परिच्छेद
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सवैया तेईसा। . पांच अणुव्रत तीन गुणव्रत शिक्षाव्रत पुनि निर्मल च्यार । सम्यग्दर्शन ज्ञान सहित जो, धार तीव्र प्रमाद निवार ॥ नर विद्याधर अमर सम्पदा, अद्भुत भोगि भोग जगसार । लहै अमितगति सुखमय शिवपद वंदू चरण तास अविकार ।
इति श्रीमदमितगत्याचार्यकृते श्रावकाचारे षष्ठ परिच्छेदः । इति श्री अमितगति आचार्यकृत श्रावकाचारविर्षे
षष्ठ (छठा) परिच्छेद समाप्त भया।
सप्तम परिच्छेद
प्रागै व्रतनिकी महिमा दिखावै हैव्रतानि पुण्याय भवन्ति जंतोर्न सातिचाराणि निषेवितानि । सस्यानि कि क्वपि फलंति लोके मलोपलीढानि कदाचनापि ॥१॥
अर्थ-जीवकै अतीचर सहित सेये भए व्रत हैं ते पुण्यके अर्थ होय हैं, इहां दृष्टांत कहै हैं जैसे विना नींदे कडा सहित मल सहित लोक विर्षे सस्य हैं ते कहां कहूं भी कदाचित भी फल हैं? अपि तु नाहीं फल है ॥१॥
मत्वेति सद्भिः परिवर्जनीयाः, व्रते व्रते ते खलु पंच पंच । उपेयनिष्पत्तिमपेक्षमाणा, भवंत्युपाये सुधियः सयात्नः ॥२॥
अर्थ-ऐसी मान करि पंडितनि करि व्रत व्रत विर्षे ते पांच पांच अतीचार त्यागने योग्य हैं, जातें उपेय कहिए जाके अर्थ उपाय करिए ऐसा कार्य ताकी उत्पत्तिकौं वांछते पंडित हैं ते उपाय जो ताका कारण ताविर्षे यत्न सहित होय हैं।