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________________ १५० ] श्री अमितगति श्रावकाचार -- प्रर्थ-दुनिवार अर अतिगहन कहिए भयानक ऐसा जो मरनका आगमन ताहि जानि करि निश्रयरूप है मति जाकी ऐसा धीर पुरुष है सो बांधवनके समूहकौं पूछ के मोह छडायकै आगम प्रमाण सल्लेखनाविधिको श्रावक मांडै है, ऐसा जानना ॥८॥ आराधनां भगवती हृदये विधत्ते, सज्ञानदर्शनचरित्रतपोमयीं यः । निर्धू कर्ममलपंकमसौ महात्मा, शर्मोदकं शिवसरोवरमेति हंसः ॥६६॥ अर्थ-जो सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तपमयी जो आराधना भगवती ताहि हृदय विर्षे धारै है सो यहु महात्मा हंस मोक्षसरोवरकौं प्राप्त होय है, कैसा है मोक्ष सरोवर नाश भया है कर्ममल रूप कीच जाका अर सुखरूप है जल जा विर्षे ऐसा है । भावार्थ-जो सन्यास मरन करै है सो थोडे ही कालमैं मोक्षकों प्राप्त होय है, ऐसा नियम जानना ॥६६ प्रागै अधिकारकौं संकोचै है जिनेश्वरनिवेदितं मननदर्शनालंकृतं, द्विषविडधमिद व्रतं विपुलबुद्धिभिर्वारितम् । विधाय नरखेचरत्रिदशसंपदं पावनी, ददाति मुनिपुंगवामितगतिस्तुतां निव॒तिम् ॥१००॥ मर्थ-जिनेश्वर देवनें कह्या अर ज्ञानदर्शन करि शोभित अर महाबुद्धीनकरि धर्या ऐसा यह द्वादश प्रकार व्रत हैं सो मनुष्य विद्याधर देव इनकी पवित्र संपदाकौं प्राप्त कराकै निर्वाण अवस्थाकौं देय है कैसी है निर्वाण अवस्था अप्रमाण है महिमा जिनकी ऐसे मुनिन विर्षे श्रेष्ठ मुनि तिनकरि स्तुतिगोचर करी है। भावार्थ-मुनीन्द्र जाकी स्तुति कर ऐसी मुक्तिकों प्राप्त कर है ॥१०॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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