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________________ सप्तम परिच्छेद [१४६ आगें अतिथि संविभाग व्रतकौं हैं :परिकल्प संविभागं, स्वनिमित्तकृताशनोषधादीनाम् । भोक्तव्यं सागारैरतिथिव्रतपालिभिनित्यम् ॥४॥ अर्थ-अतिथि व्रतके पालनेवाले श्रावकनि करि अपने अर्थ करे जे भोजन औषधादिक तिनका भलेप्रकार विभाग करिक पात्रकौं देकै भोजन करना योग्य है ॥६४॥ अतति स्वयमेव गृहं, संयममविराधननाहूतः । यःसोऽतिथिरुद्दिष्टः, शब्दार्थविचक्षणैः पुरुषः ॥६॥ अर्थ-शब्दार्थ विष विचक्षण जे पुरुष तिन करि सो साधु अतिथि कह्या है, सो कौन ? जो संयमकौं नांही विराधता सन्ता विना बुलाया स्वयमेव गृहिप्रति अतति कहएि गमन करै है, आवै है ॥६५॥ अशनं पेयं स्वाद्य खाद्यमिति, निगद्यते चतुर्भेदम् । अशनमतिथेविधेयो, निज शक्त्या संविभागोऽस्य ॥६६॥ अर्थ-अशन पेय स्वाद्य खाद्य ऐसे च्यार प्रकार आहार कहिए ताका विभाग कहिए वांटा अपनी शक्ति सारू इस अतिथि पात्रकं करणा योग्य है। __ भावार्थ-अपने अर्थ किया आहार तामैसें पात्रकै अथि शक्तिमाफिक देना योग्य है ॥६६॥ मुद्गौदनाद्यमशनं क्षीरजलाद्य जिनः पेयम् । तांबूलदाडिमाद्यं स्वाद्य, खाद्यं च पूपाद्यम् ॥७॥ अर्थ-मूग भात इत्यादि अशन कहिए अर दूध जल आदिककौं जिनदेवनै पेय कह्या है अर तांबूल दाडिमादिकौं स्वाद्य कहा है अर पूवा आदिकौं खाद्य कह्या है ऐसा जानना ॥७॥ प्रागै सल्लेखनाका वर्णन करें हैं ज्ञात्वा मरणागमनं, तत्त्वमति निवारमति गहनम् । पृष्ट्वा बांधव वर्ग, करोति सल्लेखनां धीरः ॥८॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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