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________________ १५२ ] श्री अमितगति श्रावकाचार भावार्थ - - व्रत तौ उपेय है अर अतिचार त्याग उपाय है जो व्रतनकी वांछे है तो अतीचार त्याग करहु, ऐसा उपदेश जानना ||२|| अहिंसाव्रत के प्रतीचार कहै हैं भारातिमात्रव्यपरोपघातछेदान्नपानतिषेधबंधाः । अणुव्रतस्य प्रथमस्य दक्षैः पंचापराधाः प्रतिषेधनीयाः ॥ ३ ॥ अर्थ – भारका प्रमाणतें उलङ्घ करि धरना, अर घात कहिए पीड़ाका कारण लाठी वैत आदितैं मारना इहां प्राणके नाशरूप घातका अर्थ नहीं ग्रहण करना जातें वह तो अनाचार स्वरूप ही है, बहुरि छेद कहिए कान नासिकादिक अगनिका छेदना, बहुरि अन्न जलका रोकना अर बन्ध कहिए वांछित स्थानकौं न जाने देना रस्सादिकतें बांधना सो बन्ध कहिए | ये प्रथम अणुव्रतके पांच अतीचार पंडितनि करि त्यागना योग्य है ॥३॥ आगे सत्य अणुव्रत प्रतीचार कहे हैं न्यासापहारः परमन्त्रभेदो मिथ्योपदेशः परकूटलेखः । प्रकाशना गुह्यविचेष्टितानां पंचातिचाराः कथिता द्वितीये ॥४॥ अर्थ -- न्यासापहार कहिए कोऊनें द्रव्य सौप्या था ताकू वह भूलक थोड़ा मांगें तब कहै इतना ही है, बहुरि पर मन्त्र भेद कहिए अ ंगविकारादिकतैं परके अभिप्रायकों जानिईर्षातें ताका प्रकाशना, वहुरि . स्वर्ग मोक्षके कारण क्रिया विशेषनिमैं अन्यथा प्रवर्त्तावना सो मिथ्यापदेश कहिए, बहुरि दूसरे के कहनेतें ठगने के अर्थ झूठ लिखना सो कूटलेख क्रिया है, बहुरि स्त्री पुरुषादिकके गुप्त चरित्रका प्रकाश करना सो रहोभ्याख्यान कहिए | ये पांच अतीचार दूसरे सत्य अणुव्रत विषै कहे हैं ॥४॥ श्रा प्राचार्य अणुव्रत के प्रतीचर कहैं हैं : व्यवहारः कृत्रिमकः स्तेननियोगस्तदाहृतादानम् । ते मानवैपरीत्यं विरुद्धराज्यव्यतिक्रमणम् ॥५॥ अर्थ - झूठें सुवर्णादि बनावना सो कृत्रिम व्यवहार कहिए, बहुरि चौरको चौरीमैं लगावना सो स्तेन प्रयोग कहिए, बहुरि चोर करि कल्याण
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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