SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० ] श्री अमितगति श्रावकाचार आगें गद्य वचनकौं कहैं हैंहिंसनताडनभीषणसर्वस्वहरणपुरः सरविशेषम् । गर्दा वचो भाषते गोजिज्झतवचनमार्गज्ञाः ॥ ५५ ॥ अर्थ-हिसारूप ताडनारूप भयानक सर्वद्रव्य हरण स्वरूप इत्यादिक हैं भेद जाके ऐसा जो निंद्य वचन ताहि निंद्यपना करि रहित वचनके मार्ग जानने वाले हैं ते गह्यं वचन कहैं हैं ॥ ५५ ॥ अर्थ्य पथ्यं पथ्यं श्रव्यं, मधुरं हितं वचो वाच्यम् । विपरीतं मोक्तव्यं जिनवचनविचारकैनित्यम् ॥ ५६ ॥ अर्थ-जिनेन्द्रके वचनके विचार करने वाले पुरुष हैं तिन करि नित्य ही प्रयोजनरूप सुखकारी जैसा का तैसा सुनने योग्य मधुर हितरूप ऐसा वचन कहना योग्य है, अर इनतें विपरीत उल्टा वचन है सो त्यागने योग्य है ॥ ५६ ॥ वैरायासाप्रत्ययविषादकोपादयो महादोषाः । जन्यतेऽनृतवचसा, कुभोजनेनैव रोगगणाः ॥ ५७ ॥ अर्थ-जैसे खोटे भोजन करि निश्चयतें रोग उपजै है तैसे असत्य वचन करि वैरभाव भ्रम अप्रतीति विषाद् क्रोध इत्यादि महादोष हैं ते उपजै हैं ॥ ५७ ॥ वचसावृतेन जन्तोब तानि, सर्वाणि जटिति नाश्यते । विपुलफलवंति महत्ता, दवानलेनेव विपिनानि ॥ ५८ ॥ अर्थ-जैसे महान् दावानल करि बड़े फलनि करि सहित जे वन हैं ते नाश कीजिए हैं तैसें असत्य वचन करि जीवके सर्व व्रत हैं ते शीघ्र नाश कीजिए है ॥ ५८ ॥ इहां तांई असत्य त्याग अणुव्रतका वर्णन किया। आगें अचौर्य व्रतका वर्णन करै हैं-- क्षेत्रे ग्रामेऽरण्ये रथ्यायां, पथि गृहे खले धोषे । ग्राह्य न परद्रव्यं नष्टं, भ्रष्टं स्थितं वाऽपि ॥ ५६ ॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy