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षष्ठम परिच्छेद
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सो सदलपन कहिए भूतनिहव विद्यमान वस्तुका अभाव कहना ताहि सांचा है ज्ञान तिनका ऐसे पंडित हैं ते दूसरा असत्य कहैं हैं ॥ ५० ॥
आगें विपरीत असत्यकौं कहैं हैंविपरीतमिदं ज्ञेयं तृतीयकं, वद्वदंति विपरीतम् । सग्रन्थं निम्रन्थं निम्रन्थमपोह सग्रन्थम् ॥ ५१ ॥
अर्थ-परिग्रह सहित हैं सो तो निग्रंथ है, अर परिग्रह रहित हैं सो भी इहां सग्रन्थ हैं ऐसा जो विपरोत उलटा बोल है सो यह तीसरा असत्य विपरीत जानना ॥ ५१ ॥
आगें निंद्य नामा असत्यकौं कहैं हैंसावद्याप्रियगा प्रभेदतो, निद्यमुच्यते त्रेधा। वचनं वितथं दक्षैर्जन्माधिनिपातने कुशलम् ॥ ५२ ॥
अर्थ-पंडितनि करि सावद्य अर अप्रिय अर गए इन भेदनि करि निद्य वचन तीन प्रकार कहिए है, कैसा है यह असत्य वचन संसारसमुद्र विर्षे पटकने मैं प्रवीण है ॥ ५२ ॥
आगें निंद्य वचनके तीन भेदनिमें प्रथम सावद्य वचनकौं कहैं हैंआरम्भाः सावद्या विचित्रभेदा यतः प्रवर्तन्ते । सावद्यमिदं ज्ञेयं चचनं, सावद्यवित्रस्तः ॥ ५३ ॥
अर्थ-जाते नाना प्रकार हैं भेद जिनके ऐसे पाप सहित आरम्भ प्रवतें है सो यह सावध वचन है सो सावद्यतै भयभीत पुरुषनि करि जानना योग्य है ॥ ५३ ॥
आगै अप्रिय वचनकौं कहैं हैंकर्कशनिष्ठुरभेदनविरोधनादिबहुभेवसंयुक्तम् । अप्रियवचनं प्रोक्तं, प्रियवाक्यप्रवणवाणीकैः ॥५४ ॥
अर्थ-प्रिय बोलने मैं चतुर हैं वाणी जिनकी ऐसे पुरुषनि करि कर्कश कहिए फठोर वचन, बहुरि निठुर वचन, बहुरि औरनमै भेद करि देय ऐसा वचन, बहुरि परस्पर विरोध उपजाय देय ऐसा वचन इत्यादि अनेक भेवन करि संयुक्त अप्रिय वचन कह्या है ॥ ५४ ॥