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पंचम परिच्छेद
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अर्थ - तिस मदिराविषै सूक्ष्म हैं शरीर जिनके ऐसे जे रसकरि उपजे नाना प्रकार जीव हैं ते समस्त निंदनीक मदिराके पानतें शीघ्र मरणकौं प्राप्त होय है ।
भावार्थ - मदिरा पानीकै द्रव्यहिंसा भी तीव्र होय है ॥ ६ ॥
वारुणी निहितचेतसोऽखिलाः, यान्ति कांतिमतिकीत्तिसम्पदः । वेगतः परिहरन्ति योषितो, वीक्ष्य कांतमपरांगनागतम् ॥७॥
अर्थ-जैसे स्त्री है ते परस्त्री प्रति गए पतिकौं देख करि शीघ्र ही परिहरें है तैसें मदिराविषै लग्या है चित्त जाका ऐसा जो पुरुष ताकी समस्त कांति बुद्धि कीत्ति सम्पदा जाती रहै है |
भावार्थ - मदिरापानीकी कांति, बुद्धि, कीर्ति, सम्पदा सर्व बिगड़ि जाय है ||७||
गायति भ्रमति वक्ति गद्गदं, रौति धावति विगाहते क्लमम् । हंति हृष्यति बुध्यते मद्यमोहितमतिविषीदति
हितं,
॥५॥
अर्थ-मदिरा करि मोहित है बुद्धि जाकी ऐसा पुरुष है सो गाव है, भ्रम है, गद्गद वचन बोलै है, रोवे है, दौड़े है, कष्टकौं अवगाहे है, हिंसा कर है, हर्ष कर है, हितकौं न जाने है, विषादरूप होय है ।
भावार्थ- मद्य पानीके नाना कुचेष्टा होय है ||८||
तोतुदीति भविनः सुरारतो, वावदीति वचनं विनिदितम् । परवित्तमस्तधी, भुजीति परकीयकामिनीम् ॥६॥
मोमुषीति
न