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________________ १०६ ] श्री अमितगति श्रावकाचार अर्थ-मदिराविर्षे आशक्त पुरुष है सौ जीवनकौं पीड़ा उपजा है, निदित वचन बोलै है अर परधन चौर है अर अज्ञानी परकी स्त्रीकौं भोग है। भावार्थ-मदिरा पीवै है सो हिंसादि सर्व पाप करै है ॥६॥ नाणटोति कृतचित्र वेष्टितो, तन्नमीति पुरतो जनं जनम् । लोलुठीति भुवि रप्सभोपमो, रारटीति सुरया विमोहितः ॥१०॥ अर्थ-मदिरा करि मोहित पुरुष है सो करी है नाना प्रकार चेष्टा जानें ऐसा नाचै है, अर आगेरौं जन जन प्रति नमै है, अर गर्दभ समान पृथ्वी विर्षे लोटे है अर शब्द करै है ॥१०॥ सीधुलालसधिया वितन्वते, धर्मसंयमविचारणां यके । मेरुमस्तक निविष्टमूर्त यस्ते स्पृशंति चरण( स्तलम् ॥११॥ अर्थ-जैसे कोई पुरुष मदिरादिकी लालसासहित बुद्धि करि धर्मका वा संयमका विचार विस्तारै हैं ते मेरुके मस्तक परि तिष्ठते चरणन करि पृथ्वीतलकौं स्परौं है । भावार्थ-जैसैं मेरुपर बैठकरि कोई पृथ्वीकौं चरण करि स्पर्श चाहै सो मूर्ख हैं तैसें मदिरा पीवता सन्ता धर्मादिकका विचार करै है सो मूर्ख है, ऐसा जानना ॥११॥ दोषमेवमवगम्य वारुणी, सर्वथा न हि धयंति पंडिताः । कालकूटमववुध्य दुःखदं, भक्षयन्ति किमुजीवितार्थिनः ॥१२॥ अर्थ-या प्रकार दौषकौं जान करि पंडित हैं ते सर्वथा मदिराकौं नाहीं पीवें हैं जैसे जीनेंके वांछक जीव दुःखदाई कालकूट विषकौं जान करि कहा भक्षण करै है ? अपितु न करै है ॥१२॥ मांसभक्षणविषक्तमानसो, यः करोति करुणां नरोऽधमः । भूतले कुलिशवह्नितापिते, नूनमेष वितनोति वल्लरीम् ॥१३॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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