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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® 6. स्थिरीकरण :- सामने वाले व्यक्ति को आपकी प्रवृत्ति द्वारा धर्म या अधर्म में स्थिर
करना । अधर्म में स्थिर करने से अनाचार दोष लगता है । उपबृंहणा में प्रशंसा, समर्थन आता है, स्थिरीकरण में वर्तन आता है । वर्तन में रहना हमेशा अधिक कठिन आचार की मांग करता है। किसी जीव को सत्य धर्म में स्थिर करें तो उसका फल भवोभव प्राप्त होता है । सामने वाले को धर्म में स्थिर करने के लिए जैसा संभव हो वैसा प्रयत्न करना चाहिए। कोशा' ने सिंह गुफावासी' मुनि का आबेहुब स्थिरीकरण किया था। * श्रद्धा को धर्म समझने के पश्चात् भी धारण करके रखना दुष्कर है । श्रद्धा प्राप्ति के
पश्चात् इसे नि:शंक रखना इससे भी दुष्कर, इससे अधिक निष्कांक्षा दुष्कर, इससे अधिक निर्विचिकित्सा दुष्कर और इससे भी अधिक अमूढ दृष्टि पश्चात् उपबृहणा, पश्चात् स्थिरीकरण, इसके अधिक वात्सल्य और सर्वाधिक दुष्कर
प्रभावना दर्शनाचार है। * दर्शनागुण - समकित प्राप्त करने के लिए यह आठ दर्शनाचार अमोघ साधन हैं।
आठ दर्शनाचार यथाशक्ति पालने चाहिए । शक्ति होने पर भी न पाले तो दोष
लगता है । जितनी शक्ति हो उतनी मात्रा तक ही पालें तो गुण स्फुरित होता है। * स्थिरीकरण से ही शासन नवकार (दृढ़) बनता है । संघ में जितना स्थिरीकरण
उतना ही शासन की दृढ़ता बढ़ती है। * आठ दर्शनाचार का मूल क्या ? ‘गुणानुराग' * दर्शनगुण का स्वरूप : तत्व संवेदनवाला हो । वृत्ति में भी सत्य और परिणाम भी
सत्य। * धर्म प्रभावना का दान सार्वजनिक होता है । ‘गुप्तदान' समस्त नहीं होता । संपत्ति
हो, अधिक दान नहीं दे सको तो ममता' को वोसिराना चाहिए । वस्तु नहीं मूर्छा
को वोसिराना चाहिए। * वोसिराना अर्थात् राग-द्वेष के चक्रव्यूह को तीनो योग से खंडित करना। GUJJJJJJJJJJJ 65 QUUUUUUUUUUUS