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किया गया परिश्रम पुरुषार्थ है । पुरुषार्थ याने वीर्यांतराय का क्षयोपशम । कर्म एवं
भवितव्यता होने के पश्चात् भी उद्यम के बिना कार्य सिद्धि नहीं । जागृति ही उद्यम है। 5. भवितव्यता (नियति-प्रारब्ध) : सर्वज्ञ जिस परिस्थिति को जिस प्रमाण में अपने
ज्ञान में दृष्टिगत करते हैं । उसी प्रमाण में परिस्थिति का निश्चित बनना उसे भवितव्यता कहते हैं। * भगवान देखे उस प्रमाण में घटना होवे वह भगवंत की सर्वज्ञता । भगवान जिस
प्रमाण में होवे उस ही प्रमाण में देखे वह भगवान की वीतरागता है । निष्प्रयोजनता, निर्मोहिता, माध्यस्थ आदि । जिसमें फेरफार नहीं है जो टलने
वाला नहीं है, वह भवितव्यता। * स्वभाव अनादि अनंत है, स्वभाव अक्रम से है । भवितव्यता सादि-सानंत है। यह
क्रम से है । परिस्थिति बने तब उत्पाद, पूर्ण हो तब व्यय । * भवितव्यता अबाधाकाल होने से ‘पर' वस्तु है 'भवितव्यता' वायदा का व्यापार है, उद्यम रोकड़े का"।
स्त्री के मातृत्व प्राप्ति में पांच कारण हैं स्वभाव - स्त्री ही माता बन सकती है। काल - ऋतुवंती होने के बाद ही, गर्भ रहने के पश्चात्, गर्भकाल पूर्ण होने के
बाद ही माता बन सकती है। कर्म - पूर्वकृत मातृत्व प्राप्ति का कर्म बांधा हो एवं कर्म उदय में आए तब ही
माता बना जा सकता है। पुरुषार्थ - पुरुष के साथ क्रियात्मक संयोग द्वारा ही मातृत्व सुख मिलता है।
भवितव्यता - योग्य प्रकार की भवितव्यता न हो तो स्त्री माता नहीं बन सकती है। * भवितव्यता में हम पराधीन हैं । परंतु भाव में स्वाधीन हैं । बाहर बनने वाली परिस्थिति
हमारे वश में नहीं । परंतु घटित घटनाओं के ऊपर भाव में कैसे सावधान बने रहना वह
हमारे हाथ में है। 9@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 60 HOGOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©